Book Title: Veervaan
Author(s): Rani Lakshmikumari Chundavat
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 12
________________ "गींदोलीरी लड़ाई में झगड़ा तीन तो रावल मालदेजी आपरै लोकसु एकला किया । झगड़ो चोथो भाटी घड़सी रावल जी वीरमदेजी कंवर जगमाल जी सोलंखी माधोसिंह जी । पांचमो झगड़ो कंबर जगमालसिंह जी एकलां भूतारे जोरसैं कीइंयां । पांचमां झगड़ा में तीन लाख यादमी खेत पड़ीया । अठी राठोरां रा यादमी लाख छा जांमासु आदमी हजार पचीस खेत महाराई चक्र जुद्ध हुयो।" पृ०१५ ____वीरवांण और उसके कर्ता के सम्बन्ध में राजस्थानी ग्रंथ में दी गई टिप्पणी महत्वपूर्ण है जिसमें कहा गया है "मैं बादर ढ़ाढ़ी जोईया का ही हूँ सो मैने पूछकर जैसी हकिकत सुनी वैसी काव्य में प्रकट की है । मैंने अपनी उक्ति अथवा सामर्थ्य के अनुसार रावलजी, जगमालजी और कुंवर जी रिडमल जी के कहने से यश बनाकर सुनाया । इस युद्ध के बीच वर्ष बाद यह ग्रंथ बनाया है ।"५ वीरमजी और जोहीयों के सम्बन्ध का वर्णन दूहा छन्द संख्या ६३ से प्रारंभ होता है । प्रारंभ में महामाया का स्मरण करते हुए लुणराब के सात पुत्रों की वीरता का वर्णन किया गया है । फिर प्रकट किया गया है कि जोहीया माधव ने एक बार मुहम्मद शाह के अशर्फियों के ऊंट लूट लिये । तब मुहम्मद शाह ने सारे, जोहियों के सिंध को दवा लेने की धमकी दी । तब जोहिये वीरमजी से मिले "मैमंद नै जगमाल रै, जबर बैर ओजाण । आया सरण जोहियां, सिंध छोडै साहिबाण ॥" दिल्ली सुलतान की सेना ने वीरमजी पर चढ़ाई की किन्तु वे जोहियों की रक्षा में . तत्पर रहे । युद्ध में वीरमजी की विजय हुई जिसके लिये लिखा है: वीरम माल वीरवर, अरिअण. दिया उठाय । सरव फौज पतसादरी, पाली गी पिछताय ।। तदुपरान्त वीरमजी और जोहियों के संघर्ष का कारण बताया गया है, कि जो हेयों ने जवाद नामक सुन्दर घोड़ी की बछेरी वीरमजी के भाई मलीनाथ जी के मांग ने पर भी न दी। __५. संभव है कि सवन्धित पंक्तियां काव्य की प्रमाणिकता बताने के लिये क्षेपक रूप में जोड़ी गई हो । काव्य का सम्बन्ध मुख्यतः हार्दिक अभिव्यक्ति से होता है । कवि के लिये शास्त्रज्ञ अथवा उच्च शिक्षित होना आवश्दक नहीं होता। क्योंकि विद्यालय की शिक्षा का सम्बन्ध बहुधा बौद्धिक अध्ययन से ही . होता है। सामान्य शिक्षित व्यक्ति भी बहुश्रुत और अपनी कला के धनी होते हैं। किन्तु वे अपनी रचनाओं को कभी कभी शुद्ध लिखने में भी असमर्थ होते हैं। ऐसी अवस्था में काव्य में समय समय पर परिवर्तन होते रहते है । लोकप्रिय होने पर काव्य प्रायः मोखिक ही प्रचलित हो जाते हैं। फिर एसे काव्य में मूल छन्दों का सुलाना और नवीन छंदों का जुड़ना असंभव नहीं होता। ऐसा प्रतित होता है कि पीछे से किसी ने वीरवांण को लिपिबद्ध कर स्पष्टीकरण के लिये गद्यांश जोड़ दिये हैं।

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