Book Title: Veervaan
Author(s): Rani Lakshmikumari Chundavat
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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चढ घोड़ा भड़ चालीया रज गेण ढकाया । मिलीया भारत जांगलु अध रतरा आया ।। मीर केइ रीण मारीया मदु मन चाया । . काट कटका काढ़ीया खल खेंग खपाया ।।। हुर अपछर हरप अत सुरां वर पाया। ग्रीधण साकण. जोगणी पल पूरा पाया ।। वीरम छोडे जांगलु साहीयांण सिधाया। सज जुध जोया सांपला वीरम वचवाया ॥ जद पीछा तठ पातसा धर अपणी धाया । दल जी कोसां दोय तक सामे ले आया । सजे उमंग साहिवाण मैं वीरम ध वाया। दीध वधाई राइकां जद गोगा जाया ।। एक महीनो आठ दिन थठ गोठां थाया। वैरो लप रहवास कुंदलजी दरघाया । बारा गाम ज बगसीया चिता वीरम चाया । डांण वले उचका दिया आधा अपणाया ॥ धाडै धन . धुर माझीया मांझी वैमाया ।
वीरमकु देवण. वलै लष वैरे, लाया ॥ . . . इस युद्ध से राठोड़ों की स्थिति सुदृढ़ हो गई और
लप वैरे पैदा सलप, सपरी आवै साप ।
सापांरा उपजै सदा, लेपे रिपीया लाप ।। राठौड़ भाई जोहियों से बदला लेने का उपाय करने लगे। एक दिन वीरमजी ने जोहियों की सांढणियां छीन ली:
दीठी वीरम हेक दिन पीती सर पांणी । वीरमरै सव सांढीयां निजरां ' गुजराणी ॥ वीरम चित विटालियां ऊंधी मत आणी ।, सात हजारु सांढीयां दिन हेक दगांणी ॥ आयर जिणरी अोठीयां कल कुकरांणी । दस हजार चढीया दुभल रज गैण ढकाणी ॥ . मारै वीरम मेटसा करसां तुरकांणी । . लप बरे वीरस लिये सांढयां प्रांपांणी ॥ दोय कोसां पूगो दलो लारे लुणीयांणी । मानों मानों मारकां सचो सलपाणी ॥

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