Book Title: Vallabhiya Laghukruti Samucchaya
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 5
________________ श्रीश्रीवल्लभीय-लघुकृति-समुच्चयः मननी शंकानुं समाधान जोई. अन्य कोई पण आयोजननो विकल्प विचार्या वगर ज प्रस्तुत पुस्तक- प्रकाशन करवानो लाभ अमोने मळे ते अंगे पूज्यश्रीने विनंती करी. गुरुभगवंते पण योग्य मार्गदर्शन आपी प्रकाशन अंगेनी अमोने सहर्ष अनुमति आपी. पुस्तक प्रकाशनमां अमोने प्रेरणा आपनार परम पूज्य आचार्य श्री विजयचंद्रोदयसूरीश्वरजी म.सा.ना लघुबंधु परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री विजय अशोकचंद्रसूरीश्वरजी म.सा.ना शिष्यः परम पूज्य आचार्य श्री विजयसोमचंद्रसूरीश्वरजी म.सा.नो तेमज संपादक महो. विनयसागरजी तथा डो. नारायण शास्त्रीनो खूब खूब आभार. प्रस्तुत पुस्तकना प्रकाशननो लाभ सा.श्री विनीतयशाश्रीजीना शिष्या सा.श्री विश्वयशाश्रीजीना शिष्या सा.श्री धन्ययशाश्रीजीना चरणकमलमां जीवन अर्पण करनार बेनश्री चंद्राबेन (सा.श्री सिद्धयशाश्रीजी) तथा तेमना सुपुत्री बेनश्री दीप्तिबेन (सा.श्री हेमयशाश्रीजी)ना दीक्षा प्रसंगे थयेल ज्ञानद्रव्यनी उछामणीमांथी लेवायो छे. प्रस्तुत प्रकाशननी संपूर्ण प्रीन्टिीग जवाबदारी संभाळवा बदल श्री मंजुलभाई तथा किरीट ग्राफीक्सवाला श्री किरीटभाईनो खूब खूब आभार. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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