Book Title: Uttaradhyayanani Part 03 And 04 Author(s): Bhavvijay Gani, Harshvijay Publisher: Vinay Bhakti Sundar Charan Granthmala View full book textPage 4
________________ WY प्रस्तावना उत्तराध्ययनसूत्रे ॥२॥ ॥२॥ EveEvereeeeeeeeeeeeee इसलिए सार्थक है कि समस्त आगमों में सर्व जनोपयोगी सरल ओर प्रबोधक हृदयस्पर्शी उपदेशों का संग्रह रूप यह सूत्र है। इसमें कुछ सुन्दर कथाएं हैं। कुछ अध्ययनों में सैद्धांतिक विवेचन है और कुछ में मर्मस्पर्शी उपदेश हैं। 'अध्ययन' शब्द का अर्थ नियुक्तिकार ने किया है- "केवल आत्म चिन्तन-आत्मस्वाध्याय अर्थात् आत्मा में तदाकार वृत्ति का सम्पादन करना ही अध्ययन है।" खरी आध्यात्मिकता का सम्पादन करना ही वास्तविक अध्ययन है। अतः उत्तराध्ययन शब्द का अर्थ है "श्रेष्ट आध्यात्मिक स्वाध्याय" विद्वानोंने इसे विशिष्ट श्रमणकाव्य की संज्ञा दी है। इस सूत्र में ३६ अध्ययन हैं। समवायांग सूत्र के ३६वें स्थान में भी इन ३६ अध्ययनों के नाम दिए हुए हैं। अध्ययनों के नाम | इस प्रकार हैं (१) विनय श्रुत, (२) परिपह, (३) चतुरंगीय, (४) असंस्कृत, (५) अकाममरणीय, (६) क्षुल्लक निग्रंथीय, (७) एलेक, (८) कापिलिक, (6) नमिप्रव्रज्या, (१०) द्रुमपत्रक, (११) बहुश्रुत पूज्य, (१२) हरिकेशीय, (१३) चित्तसंभूतीय, (१४) इषुकारीय, (१५) स-भिक्खू, (१६) ब्रह्मचर्य-समाधि स्थान, (१७) पाप श्रमणीय, (१८) संयतीय, (१६) मृगापुत्रीय, (२०) महानिग्रंथीय, (२१) समुद्रपालीय, (२२) रथनेमीय, (२३) केशीगौतमीय, (२४) समितियां, (२५) यज्ञीय, (२६) समाचारी, (२७) खंलुकीय, (२८) मोक्षमार्ग गति, (२६) सम्यकत्व पराक्रम, (३०) तपोमार्ग, (३१) चरणविधि, (३२) प्रमादस्थान, (३३) कर्मप्रकृति, (३४) लेश्या, (३५) अणगार (मार्ग), (३६) जीवाजीव विभक्ति । इनमें से अध्ययन २४, २६, २८, २९, ३०, ३१, ३३, ३४, ३६ इन 8 में तो सिद्धान्तिक चर्चा है। और अध्ययन है, १२, १३, १४, १८, १९, २०, २१, २२, २३ और २५ इन ११ में कथा प्रसङ्ग हैं। अवशेष उपदेश प्रधान हैं। कथाएं भी RRRRRRRRRRRRमरमसलकPage Navigation
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