Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ उत्तराध्ययनसूत्रम् [ चतुर्दशाध्ययनम् जानकर तथा अपने उत्पत्ति स्थान को देखकर वे दोनों देव भृगु पुरोहित के पास आकर कहने लगे कि तुम चिन्ता मत करो, तुम्हारे घर में दो पुत्र उत्पन्न होंगे परन्तु वे दोनों बाल्यावस्था में ही दीक्षित हो जावेंगे । इसलिए आपने उनको बाल्य काल में ही जैन मुनियों के सहवास में रखने तथा विद्याभ्यास कराने का प्रयत्न करना। इस प्रकार कहकर वे दोनों ही देव अपने स्थान को चले गये । फिर कालान्तर में उस भृगु पुरोहित के घर में दो पुत्रों का जन्म हुआ। पुत्रों के जन्म के अनन्तर उसने विचार किया कि इनको साधुओं के संसर्ग से सर्वथा बचाये रखना चाहिये। इस विचार को कार्यरूप में परिणत करने के लिये उसने नगर के बाहर एकान्त स्थान में जाकर कर्पट नाम के ग्राम में निवास कर लिया तथा अपने दोनों पुत्रों को साधुओं के सम्बन्ध में इस प्रकार शिक्षा देने लगा-हे पुत्रो ! जो जैन भिक्षु होते हैं, जिनके मुख पर मुखवत्रिका बंधी हुई होती है और जिनके पास रजोहरण होता है और जो भूमि को देखकर चलते हैं, उनके हाथ में एक वस्त्र की झोली होती है । उसमें वे शस्त्र आदि रक्खा करते हैं । अतः उनकी संगति कदापि नहीं करनी । क्योंकि वे घातक होते हैं । वे बालकों को पकड़ कर ले जाते हैं और मार डालते हैं ! इसलिए उनसे सर्वदा दूर ही रहना चाहिए । इस प्रकार पिता के शिक्षण देने पर वे दोनों बालक जैन साधुओं से भय खाने लग गए ! भृगु के ये भाव थे कि ये न तो साधुओं को मिलेंगे और न उनसे दीक्षा ग्रहण करने को उद्यत होंगे । एक समय वे दोनों बालक ग्राम के बाहर खेलने के लिए गए, तब वहां पर दो साधु, नगर के बाहर रास्ता भूल जाने से उसी ग्राम में आ गए । भृगु पुरोहित ने उनको आहार पानी देकर कहा कि भगवन् ! इस ग्राम के लोग साधुओं से अपरिचित हैं । इतना ही नहीं किन्तु उनके अत्यन्त द्वेषी भी हैं । तथा इस ग्राम के बालक मेरे पुत्रों १ दीपिका टीका में लिखा है कि वे दोनों देव जैन भिक्षु का रूप धारण करके भृगु पुरोहित के घर में पाए, उस पुरोहित को धर्मोपदेश दिया । सन्तान के विषय में पुरोहित के प्रश्न करने पर उन्होंने कहा कि तुम्हारे दो पुत्र उत्पन्न होंगे और वे साधु वृत्ति को भी धारण करेंगे। अतः आपने उनकी दीक्षा में विघ्न नहीं ढालना तथा आप भी धर्म का अाराधन करना सीखो। तब भृगु पुरोहित ने उन मुनियों की सब बातों को स्वीकार करके उनके पास से श्रावक के व्रतों को अंगीकार किया।

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 644