Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 10
________________ अह ह उसुयारिज्जं चोदहमं ज्यां अथेषुकारीयं चतुर्दशमध्ययनम् पाठकों को स्मरण होगा कि प्रस्तुत तेरहवें अध्ययन की पूर्व पीठिका में मुनि के पास चार गोपालों ने यह वर्णन आ चुका है कि सागरचन्द्र नामक दीक्षा ग्रहण की । उनमें से चित्त और संभूति का वर्णन तो आ चुका परन्तु शेष जो दो मुनि थे वे शुद्ध संयम का पालन करते हुए मर कर देव लोक में गये । फिर वहां से च्यव कर क्षितिप्रतिष्ठित नामक नगर के किसी प्रधान सेठ के घर में वे दोनों पुत्र रूप में उत्पन्न हुए । युवावस्था में आने पर उन दोनों की अन्य चार व्यापारियों से मित्रता हो गई । अन्त में इन छओं ने फिर दीक्षा ग्रहण कर ली । इनमें से चार ने निष्कपट रूप संयम का आराधन किया परन्तु दो की धर्म क्रिया छलयुक्त थी । अनुक्रम से ये छओं साधु काल करके प्रथम देवलोक के नलिनी गुल्म नामक विमान में देवता रूप से उत्पन्न हुए । परन्तु माया-कपट के प्रभाव से उन छः में से दो जीव, स्त्री-देवी के भाव - रूप से उत्पन्न हुए। फिर जो गोपालों में से दो जीव थे उनको छोड़कर अन्य चार जीव उस देवलोक से are कर, इषुकार नगर में एक तो इषुकार नामक राजा हुआ, दूसरा उसी राजा की कमलावती नाम की रानी बनी, तीसरा भृगु नाम का पुरोहित हुआ और चौथा उस पुरोहित की यशा नाम वाली भार्या हुई ! अपरंच भृगु पुरोहित पुत्र के न होने से अत्यन्त शोकग्रस्त रहता था । इधर उन दोनों गोपालक के जीवों ने अवधि ज्ञान के द्वारा अपने आयु कर्म की स्थिति को केवलमात्र छः मास की

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