Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 11
________________ आचार्यकल्प संघशास्ता शासन-सूर्य गुरुदेव मुनि श्री रामकृष्ण जी महाराज का मंगलमय आशीर्वचन महापुरुष के वचन अमृत से भरे कलश होते हैं। यह अमृत, स्वर्ग से पाताल तक संसार की किसी भी वस्तु में सुदुर्लभ है। यह अमृत मनुष्य को संसार का विष पीने से रोकता है। महापुरुष की वाणी में सम्बोधि का प्रकाश प्रदीप्त होता है। वह संसार के लिए जो कुछ, जितना कुछ बोल गया, वह सब सिमट कर आगम के रूप में अन्तर्हित हो जाता है। तर्क-सम्मत धर्म-ग्रन्थ होता है। मनुष्य-जीवन का सर्वश्रेष्ठ सार-तत्व होता है। इस के आधार पर मनुष्य कमल-रूप जीवन का निर्माण करते हुए परम एवम् स्थायी सार्थकता प्राप्त करता है। साधक के लिए आगम का बहुत बड़ा महत्त्व है। भौतिक शरीर में जो स्थान नेत्रों का है,साधक-जीवन में वही स्थान आगम का है। इसीलिए कहा भी है-'आगमचक्खू साहू। इस युग के परम तीर्थंकर भगवान् महावीर की परम धर्म-देशना है'उत्तराध्ययन सूत्र'। यह पृथ्वी पर खड़ा प्रकाश-स्तम्भ है, जो अन्धकार को दूर कर मनुष्य के परम मार्ग को प्रकाश से स्पष्ट करता है। इसके प्रकाश से मनुष्य के मार्ग का कण-कण आलोकित हो उठता है। भ्रमित होने की प्रत्येक आशंका समाप्त हो जाती है। साधक के साध्य तक पहुंचने की प्रत्येक सम्भावना उजागर होने लगती है। श्रमण-धर्म के मुकुट प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद गुरुदेव योगिराज श्री रामजीलाल जी महाराज की अदृश्य अनुकम्पा से प्रेरित हो कर सुभद्र मुनि ने 'उत्तराध्ययन सूत्र' का यह हिन्दी रूपान्तर प्रस्तुत करने का सद्प्रयत्न किया है। आगम-प्रस्तुति की अन्य योजनायें भी उसने अपनी सजग आस्था से बनाई हैं। उसका श्रम फलीभूत हो, आगम की यह प्रस्तुति प्रभावक हो, और अपने पूर्वजों की कीर्ति-परम्परा को वह अपनी सम्यक् सक्रियता से सदैव गौरवान्वित करे, ऐसी मेरी भावना है। मेरा यह आशीर्वाद उसके साथ है। -मुनि रामकृष्ण (संघशास्ता)

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