________________
( 3 ) जैन धर्म की दृष्टि से सष्टि की उत्पत्ति जिन-जन धर्म के आध्यात्मिक नेता जीव, अजीव. पुण्य, पाप, प्राश्रव, संवर, बंध, निर्जरा और मोक्ष तीन रत्नों द्वारा मोक्ष सम्यग दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चरित्र मुक्त प्रात्मा-परमात्मा के सर्व लक्षगा अनुभव करती है तीर्थकर और केवली याने सामान्य सिद्ध तीर्थकर कौन ? अहिंसा का आदर्श सामायिक और प्रतिक्रमण दो प्रावश्यक क्रियाए स्याद्वाद या अनेकान्तवाद के सिद्धान्त
जैन धर्म में पड़े हुए मुख्य भेद सात निण्हव-जामालि, तिष्यगुप्त, आषाढ़, अश्वमित्र, गंग, छलुए और गोष्टा माहिल मंखलिपुत्त गोशाल-महावीर का मुख्य प्रतिस्पर्धी तत्कालीन भारतीय धार्मिक प्रवाह की महान तरंग में मंखलिपुत्त का स्थान डा. बरूया और गौशाल का प्राजीवक मत महावीर के संशोषित जैन धर्म पर गोशाल का प्रभाव गौशाल की मृत्यु तिथि ऐतिहासिक दृष्टि से भाजीविक जैन धर्म में अन्य महत्व के भेद जैन धर्म के श्वेताम्बर-दिगम्बर सम्प्रदाय पंथभेद की विविध दंतकथाएं पंथभेद के समय के विषय में सामान्य एक्यता पंथभेद का मूल कारण : साधुता का आवश्यक लक्षण नग्नता है जैन और नग्नवाद दो प्रधान विषय जिनके विषय में दोनों एकमत नहीं हैं मथुरा के शिलालेख और यह महान पंथभेद ईसवी सन् के प्रारम्म तक ऐसे पंथभेद अस्तित्व में नहीं थे वल्लमी की परिषद के समय से हा अंतिम पंथभेद स्थानकवासी समाज और जैन धर्म के अन्य नाना मतभेद पंथभेदों का पागलपन जैनों की विशेषता जैन समाज आज भी क्यों जीवित है ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org