Book Title: Upmiti Bhav Prapanch Katha Part 01
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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपमितिभवप्रपञ्चा कथा / पाक्षिप्तास्ते ततः शक्या धर्म ग्राहयितुं नराः / विक्षेपदारतस्तेन संकीर्णा सत्कथोच्यते // 46 // तस्मादेषा कथा द्धधर्मस्यैव विधास्यते / भजन्ती तद्गुणापेक्षां क्वचित्संकीर्णरूपताम् // 5 // संस्कृता प्राकृता चेति भाषे प्राधान्यमहतः / तत्रापि संस्कृता तावदुर्विदग्धहदि स्थिता // 51 // बालानामपि सद्बोधकारिणौ कर्णपेशला / तथापि प्राकृता भाषा न तेषामपि भासते // 52 // उपाये मति कर्त्तव्यं सर्वेषां चित्तरञ्जनम् / अतस्तदनुरोधेन संस्कृतेयं करिष्यते // 53 // न चेयमतिगूढार्था न दौर्धेर्वाक्यदण्डकैः / न चाप्रसिद्धपर्यायैस्तेन सर्वजनोचिता // 54 // कथाशरीरमेतस्या नाम्नैव प्रतिपादितम् / भवप्रपञ्चो व्याजेन यतोऽस्यामुपमीयते // 55 // यतोऽनुभूयमानोऽपि परोक्ष इव लक्ष्यते / अयं संसार विस्तारस्ततो व्याख्यानमहर्ति // 56 // अथवा // भ्रान्तिव्यामोहनाशाय स्मृतिबीजप्रबोधनम् / कथार्थसंग्रहं कृत्वा शरीरमिदमुच्यते // 5 // दिविधेयं कथा तावदन्तरङ्गा तथेतरा / शरीरमन्तरङ्गायास्तत्रेदमभिधीयते // 5 // For Private And Personal Use Only

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