Book Title: Upmiti Bhav Prapanch Katha Part 01 Author(s): Publisher: View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथमः प्रस्तावः। तत्रैवं स्थिते // रजस्तमोनुगाः सत्त्वाः खयमेवार्थकामयोः / रज्यन्ते धर्मशास्तारमवधय निवारकम् // 38 // रागद्वेषमहामोहरूपं तेषां शिखित्रयम् / अर्थकामकथासर्पिराहुत्या वर्द्धते परम् // 40 // केकायितं मयूराणां यथोत्कण्टकवर्द्धनम् / पापेषु वर्द्धितोत्साहा कथा कामार्थयोस्तथा // 41 // कथां कामार्थयोस्तस्मान्न कुर्वीत कदाचन / कः पते क्षारनिक्षेपं विदधीत विचक्षणः // 42 // परोपकारशीलेन कर्त्तव्यं तन्मनीषिणा / हितं समस्तजन्तुभ्यो येनेह स्थादमुत्र च // 43 // तेन यद्यपि लोकानामिष्टा कामार्थयोः कथा / तथापि विदुषा त्याज्या येन पर्यन्तदारुणा // 44 // तदेतदवगम्य // इहामुत्र च जन्तूनां सर्वेषाममृतोपमाम् / शुद्धां धर्मकथां धन्याः कुवति हितकाम्यया // 4 // आक्षेपकारौँ मत्वा संकीर्णमपि सत्कथाम् / मार्गावतारकारित्वात् केचिदिच्छन्ति सूरयः // 46 // किलात्र यो यथा जन्तुः शक्यते बोधभाजनम् / कत्तुं तथैव तद्दोध्ये विधेयो हितकारिभिः // 4 // नचादौ मुग्धबुद्धौनां धर्मो मनसि भासते / कामार्थकथनात्तेन तेषामाक्षिप्यते मनः // 48 // For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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