Book Title: Upmiti Bhav Prapanch Katha Part 01
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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथमः प्रस्तावः। तथा मदागमादुच्चैर्भूयो भूयः स्थिरौलतः / संजातावधिना तेन ततोऽयं प्रतिपादितः // 77 // अन्यच्च // दहान्तरङ्गालोकानां ज्ञानं जल्यो गमागमम् / विवाहो बन्धुतेत्यादि सर्वलोकस्थितिः कृता // 78 // मा च दुष्टा न विज्ञेया यतोऽपेक्ष्य गुणान्तरम् / उपमादारतः सर्वा बोधार्थ मा निवेदिता // 6 // यतः // प्रत्यक्षानुभवामिद्धं युक्तिो यन्त्र दुष्यति / सत्कल्पितोपमानं तमिद्धवान्तेऽप्युपलभ्यते // 8 // तथाहि यथावश्यके // माक्षेपं मुद्गशैलस्य पुष्कलावर्नकस्य च / स्पर्धा सर्पाश्च कोपाद्या नागदत्तकथानके // 81 // तथा॥ पिण्डैषणायां मस्येन कथितं निजचेष्टितम् / उत्तराध्ययनेम्वेवं मंदिष्टं शुष्कपचकैः // 82 अतस्तदनुसारेण सर्वं यदभिधास्यते / प्रत्रापि युनियुक्त तद्विज्ञेयमुपमा यतः // 8 // तदेतदन्तराङ्गायाः शरीरं प्रतिपादितम् / बहिरङ्गकथायास्तु शरीरमिदमुच्यते // 84 // पूर्व विदेहे सन्मेरोः मुकच्छविजयप्रभुः / क्षेमपुयीं समुद्भूतश्वक्रवर्त्यनुसुन्दरः // 85 // For Private And Personal Use Only

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