Book Title: Upmiti Bhav Prapanch Katha Part 01
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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपमितिभवप्रपञ्चा कथा / ततोऽस्यालघुकर्माण: चौरनौरधिसंनिभाः / गम्भौरहदया भव्याः मन्जनाः श्रवणोचिताः // 6 // तेषामपि न कर्त्तव्या निन्दा नापि प्रशंसनम् / मौनमेव परं श्रेयस्तत्रेदं हन्त कारणम् // 7 // नचिन्दाया महापापमनन्तगुणशालिनाम् / स्तवोऽपि दुष्करस्तेषां मादृशेडबुद्धिभिः // 8 // किंच // अस्तुता अपि ते काव्ये पश्यन्ति गुणमन्जमा / दोषामाच्छादयन्त्येवं प्रकृतिः मा महात्मनाम // 6 // अतस्तेषां स्तवेनालं केवलं ते महाधियः / अभ्यर्थनौयाः श्रवणे तेनेदमभिधीयते // 10 // भो भव्याः समनोभूय कर्णं दत्वा निबोधत / चयं मदनुरोधेन वक्ष्यमाणं मया क्षणम् // 11 // अनन्तजनसंपूर्णमस्ति लोके सनातनम् / अदृष्टमूलपर्यन्तं नाम किंचिन्महापुरम् // 12 // नच कीदृशम् // अधोत्तुङ्गमनोहारिमौधपद्धतिसंकुलम् / अलन्धमूलपर्यन्तं हट्टमार्गविराजितम् // 13 // अपारै रिविस्तारै नापण्यैः प्रपूरितम् / पण्यानां मूल्यभूताभिराकोण रत्नकोटिभिः // 14 // विचित्रचित्रविन्यामैर्धाजते देवमन्दिरः / प्राक्षिप्तवालहृदयनिश्चलौक्वतलोचनैः // 15 // For Private And Personal Use Only

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