Book Title: Upmiti Bhav Prapanch Katha Part 01
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपमितिभवप्रपञ्चा कथा / स च स्वायुष्कपर्यन्ते निजदेशदिदृक्षया / विनिर्गतो विस्तासेन प्राप्तः शंखपुरेऽन्यदा // 86 // तत्र चित्तरणोद्याने मनोनन्दननामके / जेने ममन्तभद्राख्याः सूरयो भवने स्थिताः // 87 // प्रभूच तत्समीपस्था महाभद्रा प्रवर्तिनौ / तथा सुललिता नाम राजपुत्रौ सुमुग्धिका // 88 // तथान्यः पौण्डरीकाख्यः ममोपे राजदारकः / श्रामौत्ममन्तभद्राणं तदा संसश्च पुष्कला // 86 // ततश्च // कृतभरिमहापापं दृष्ट्वा तं चक्रवर्त्तिनम् / जानालोकेन ते धौराः सूरयः प्राहुरीदृशम् // 6 // यस्य कोलाहलो लोके श्रूयते नौयतेऽधुना / संसारिजीवनामायं तस्करो वध्यधामनि // 1 // एतत्मरेर्वचः श्रुत्वा महाभद्रा व्यचिन्तयत् / कश्चिन्नरकगाम्येष जौवो योऽवर्णि मूरिभिः // 2 // ततः मा करुणोपेता तत्समीपमुपागता / तद्दर्शनाच्च संजातं ज्ञानं तस्य स्वगोचरम् // 63 // ततो विज्ञाय वृत्तान्तं तस्कराकारधारकः / भूत्वा वैक्रियलब्यासौ तया सार्दू समागतः // 64 // ततः मा राजपुत्रौ तं पप्रच्छ विहितादरम्। अमेषचौर्यवृत्तान्तं मोऽप्युक्तस्तेन सूरिणा // 65 // For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 579