Book Title: Updeshsapttika Navya Author(s): Kshemrajmuni, Jinendrasuri Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala View full book textPage 3
________________ अल्प वक्तव्य ।।३।। पूर्वाचार्योए शास्त्रोमा आत्महित माटे घणा ग्रन्थो लख्या छे, विवेक बुद्धिवाला माटे तो गमे ते ग्रन्थ क्षीरनीर न्याये हितकारी बने छे परंतु बधाने माटे तेवं थर्बु कठीन छे जेथी धर्म शास्त्रोन वाचन मनन जरूरी छे. IM आ उपदेश सप्ततिका ग्रन्थ ७० उपदेश काव्योनो उपदेश ग्रन्थ छे. तेनी टीका पण ग्रन्थकर्ताए ज रची छे अने प्रासंगिक कथाओ प्राकृत वि. मां प्रासबद्ध वि. रीते आपी छे. सरल नही छता प्रयास साध्य छे जे बोधक अने अभ्यासनी सूक्ष्मतामा सहयोगी बने लेम छे. विशेष प. पू. चारित्रचूडामणि आ. भ. श्री विजय कमलसूरीश्वरजी महाराजाना उपदेशथी आ ग्रन्थ र विक्रम सं. १९७३ मां प्रगट थयेलो तेनी ज प्रस्तावना आ ग्रन्थ मां आपी छ जे विशेष जाणकारी माटे छे प्राचीन ग्रन्थोनुं वांचन मनन बधे ते आवश्यक छ अने प्रकाशनो पाछलनो आ हेतु सफल थाय एज अभिलाषा. २०४७ भाद्रपद शुल्क अष्टमी - जिनेन्द्रसूरि. ४५ दिग्विजय प्लोट, जामनगरPage Navigation
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