Book Title: Updeshsapttika Navya
Author(s): Kshemrajmuni, Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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।।१५।।
गाथाङ्क
विषया:
थापि सुखं न प्राप्तः
६७ मनुष्य भवादिदुर्लभत्वम्
पृष्ठ
सुरेन्द्रदत्तकथानकम् (९२) चर्म [कच्छप ] दृष्टान्तः [१३] युगशम्या दृष्टान्तः [ ९४ ] स्तम्भदृष्टान्तः [ ९५]
३९७
३९७
अत्रार्थे दृष्टान्तदशकान्तर्गतं भोजनोपरि कार्य
टिकोदाहरणं प्रथमम् (८६)
चाणक्यदृष्टान्तः (८७) धान्यदृष्टान्तः (८८) द्यूतदृष्टान्त ( ८९ )
४१४
૧૪
रत्नदृष्टान्त: ( ९० )
४१५
मुलदेवराजपुत्रस्वप्नफलकथानकम् (९१) ४१५
४१६
४२०
४२०
४२०
३९८
४००
गाथाङ्क
विषया:
पृष्ठ ४२१
क्षमायां संवरमुनिक्रथा [१६] प्रमादाचरणस्थानज्ञापने स्थूलभद्रष्टान्त [२७] ४२३ ६८ वयस्केिऽपि धर्मसमयस्य दुर्लभत्वम्
४३७
६९ शैशवादन्यत्र धर्म समयस्य दुर्लभत्वम् ४३८ अत्रातिमुक्तकक्षुल्लकसाधुदृष्टान्तः [१८-१९] ४३८
४४४
७० पूर्वकृतसुकृतमाहात्म्यम्
अत्र मृगापुत्रचरितम् [१००]
४४४
७१ सम्यक्त्वलक्षणम्
४५३
एतदुपरि श्रीमृगध्वज स्वरूपम् [ १०१] ४५३ ७२ प्रशस्तश्यावतां समक्षेत्रद्रव्यव्ययवत्तां निर्मोहानां जन्मपावित्र्यम्
४६२
७३ अस्याः सप्ततिकायाः परमार्थज्ञानपुरस्सरं पठने फलम्
प्रशस्तिः
४६३ ૪૪
।। १५ ।।

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