Book Title: Updeshsapttika Navya
Author(s): Kshemrajmuni, Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 14
________________ उपदेश प्रष्ठं सप्ततिका. ३८८ 11१४|| गाथाङ्क विषयाः पृष्ठं । गाथाङ्क विषयाः ५४ सर्वज्ञमतनिरतामा क्रियासाफल्यम् ६२ मोक्षमार्गोन्मुखानामपि क्रोधादिवैरिण: ५५ संसारभीरुकाणा संसारः सुरत एब ...३६२ पुण्यपाथेयं हरन्ति अवार्थे विमलश्राद्धोदाहरणम् (७५) ६३ जिनधर्मविमुखानामज्ञानकष्टेन नरकपातः ५६-५७ संसारस्यास्थिरत्वम् ...३६८ अत्रार्थे पूरणाख्यानम् (८१) एतदर्थे महानिग्रन्थसंबन्धः (७६) | ६४-६५ अष्टमदत्यागाधिकारः ५८ निकृष्टकर्मकारिणो दुःखिन एव ३७३ जातिमदोपरि विप्रकथा (८२) एतदुपरि मृगापुत्रकथा (७७) ३७३ कुलमदे श्रीमहावीरदृष्टान्त: (८३) ५५ जिनगुणोत्कीर्तनादिना बोधिलाभोऽवर्णवादेन । रूपमदोपरि सनत्कुमारकथा कयितपूर्वाचाबोधिलाभ: ३७८ बलमद वसुभूतिकथा (८४) अत्रार्थे श्रीसुबुद्धिसचिवोदाहरणम् (७८) ३७९ श्रुतमदोपरि सागरचन्द्रदृष्टान्तः (८५) अवर्णवादोपरि कौशिकवणिग्दष्टान्तः (७९) ३८१ लपोमदे द्रौपदीपूर्वभवः, लाभमदे आषा६० धर्मतत्त्वाज्ञानामुभयलोके दुःखमेव ३८४ ढभूतिः, ऐश्वर्यमदे रावणः, एते प्रसिअत्र वधूचतुष्कज्ञातम् (८०) ३८४ द्वत्वान्नाममात्रेण दृष्टान्तिताः ६१ पुग्योदयं बिना धर्मजार्गस्य दुर्लभत्वम् ३८७ ६६ बालाग्रमात्र प्रदेश: स्वजन्मना न रिक्तस्त ।।१४।।

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