Book Title: Updeshmala Author(s): Dharmdas Gani, Dinanath Sharma Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre View full book textPage 6
________________ आ मुख उपदेशमाला जैन औपदेशिक साहित्यविधा का प्राचीनतम ( लगभग १५०० वर्ष पुराना ) और एक श्रेष्ठ प्राकृत ग्रंथ है । इसमें चतुर्विध संघ के आचार से सम्बन्धित उपदेश संगृहीत हैं । इस ग्रंथ में एक विशिष्ट शैली का निर्माण किया गया है जिसे बाद में अनेक जैनाचार्यों ने अपनाया और इस प्रकार के कई ग्रन्थ लिखे गये । यहाँ पर सरल पद्यों में विविध औपदेशिक विषयों को लेकर उपदेश देने के साथ-साथ उस विषय के दृष्टान्त के रूप में जैन पुराणों में प्रसिद्ध कथाओं की एक माला - सी गुँथी गई है । ये दृष्टान्त उस लेखक के समय तक प्रचलित हो गये थे । नित्य स्वाध्याय करनेवाले और व्याख्यान करनेवाले साधुओं को भी इसके पद्यों को कण्ठस्थ करना सहज था । इसके पठन से पाठ करनेवाले और सुननेवाले के सामने इन दृष्टान्तों की कथाएँ उपस्थित हो जाती थीं । इसलिए यह साधुओं और श्रावकों दोनों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ और इसका प्रचलन भी बहुत बढ़ा । उपदेशमाला के आधार पर २४ औपदेशिक ग्रन्थ लिखे गये, इस ग्रन्थ की ३२ बृहद् और लघु टीकायें भी लिखी गयी हैं । इसके आठ विभिन्न संस्करण अब तक प्रकाशित हो चूके हैं । जिनमें उपमितिभव - प्रपंचा - कथा नामक प्रसिद्ध महाकथा के रचयिता महान् जैनाचार्य सिद्धर्षि की हेयोपादेया टीका, उसका गुजराती अनुवाद, रत्नप्रभसूर की दोघट्टी टीका, उसका गुजराती अनुवाद और रामविजय की टीका तथा उसका हिन्दी अनुवाद सम्मिलित है । Jain Education International १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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