Book Title: Updeshmala
Author(s): Dharmdas Gani, Dinanath Sharma
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 14
________________ ८. प्रा० उपदेशमाला दोघट्टी नो गूर्जरानुवाद ( गूर्जर ० ) अनुवादक : हेमसागरसूर, प्रकाशक : आनन्द हेमग्रन्थमालावती धनजीभाई देवचन्द जवेरी, ५० -५४ मीरझा स्ट्रीट, मुंबई - ३. सन् १९७५. इन प्रकाशित संस्करणों में से किन्हीं में उपदेशमाला के मूलपाठ में व्याकरण की गलतियाँ हैं तो किन्ही में छन्द की । कोई भी ऐसा संस्करण नहीं है जिसमें सभी गाथाएँ व्याकरण और छन्द की दृष्टि से सही हों । उदाहरण के लिए प्रत्येक संस्करण में से कुछ गाथाएँ इस प्रकार निर्दिष्ट की जा सकती हैं : संस्करण नं० १ (सिद्धर्षि) में व्याकरण की दृष्टि से गाथा नं. १०४, १०६, १०८, १०९ और ११० में त्रुटियाँ हैं । छन्द की दृष्टि से गाथा नं. १०४ में और दोनों (भाषा और छन्द) दृष्टियों से गाथा नं. १०३ और १०७ में त्रुटियाँ हैं । संस्करण नं. २ ( बालाव० ) में व्याकरण की दृष्टि से गाथा नं. १०३, १०६ और १०९ में; छन्द की दृष्टि से १०४, १०७ और ११० में तथा दोनों दृष्टियों से १०४, १०६ और १०९ में त्रुटियाँ हैं । संस्करण नं. ३ ( भावन० ) में व्याकरण की दृष्टि से गाथा नं. १०६, १०९ और ११० में और छन्द्र की दृष्टि से गाथा नं० १०४, १०७ और ११० में त्रुटियाँ हैं । संस्करण नं. ४ ( रामवि० ) में व्याकरण की दृष्टि से गाथा नं १०३, १०५, १०६ और १०९ में; छन्द की दृष्टि से गाथा नं० १०४ और १०९ में तथा दोनों दृष्टियों से गाथा नं. १०४, १०७, १०८ और १०९ में त्रुटियाँ हैं । संस्करण नं. ५ ( शाह कुं० ) में व्याकरण की दृष्टि से गाथा नं. १०३, १०९ और ११० में, छन्द की दृष्टि से १०४ और १०७ में तथा उभय दृष्टियों से १०५ और १०९ में गलतियाँ हैं । संस्करण नं. ६ ( रत्नप्र०) में व्याकरण की दृष्टि से गाथा नं. १०३, १०९ और ११० में; छन्द की दृष्टि से १०४ और १०७ में तथा दोनों दृष्टियों से गाथा नं. १०५ में त्रुटियाँ हैं । संस्करण नं. ७ (पद्मवि० ) में भाषा की दृष्टि से गाथा नं. १०३, १०६, १०९ और ११० में; छन्द की दृष्टि से १०४ और १०७ में तथा उभय दृष्टियों से १०३ और १०८ में त्रुटियाँ हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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