Book Title: Updesh Shuddh Sara
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 16
________________ ******* *-*-*-*-*-* श्री उपदेश शुद्ध सार जी "आद्यं अनादि सुद्धं" यह आत्मा अनादि काल से शुद्ध है, शुद्ध था और शुद्ध रहेगा। आत्मा ही परमात्मा है, यही ग्रहण करने योग्य है। मोक्ष का उपाय एक शुद्धात्मा का ज्ञान है। यह आत्मा शब्दों से समझ में नहीं आता, मन से विचार में नहीं आता । शब्द तो क्रम-क्रम से एक-एक गुण व पर्याय को कहते हैं। मन भी क्रम से एक-एक गुण व पर्याय का विचार करता है। आत्मा तो अनंत गुण व पर्यायों का एक अखंड पिंड है, इसका सच्चा बोध तब ही होगा, जब सब शास्त्रीय चर्चाओं को छोड़कर, गुणस्थान व मार्गणाओं के विचार को विराम देकर तथा सर्व कर्म बंध व मोक्ष के उपायों के प्रपंच को त्यागकर, सर्व कामनाओं को दूर करके, पांचों इंद्रियों के विषयों से परे हो करके, मन के द्वारा उठने वाले विचारों से हटकर बिल्कुल असंग होकर अपने ही आत्मा को अपने ही आत्मा द्वारा ग्रहण किया जायेगा, तब अपने शुद्ध आत्मा का साक्षात्कार होगा। वह आत्म तत्त्व शुद्धात्मा निर्विकल्प है, अभेद है, शुद्ध है, सिद्ध है, इसलिये निर्विकल्प होने से ही आत्मा अनुभव में आता है। जब तक रंच मात्र भी माया, मिथ्या, निदान की शल्य भीतर रहेगी, कोई प्रकार की कामना रहेगी व कोई मिथ्यात्व की गंध रहेगी, तब तक आत्मा का दर्शन नहीं होगा। यही कारण है जो ग्यारह अंग नौ पूर्व के धारी द्रव्यलिंगी मुनि शास्त्रों का ज्ञान रखते हुए, घोर तपश्चरण करते हुए भी अज्ञानी मिथ्यादृष्टि रहते हैं क्योंकि वे शुद्धात्मा की श्रद्धा, अनुभूति, ज्ञान तथा अनुभव से शून्य हैं। उनके भीतर कोई ऐसी मिथ्यात्वादि की सूक्ष्म शल्य रह जाती है, जिसको केवलज्ञानी ही जानते हैं। शास्त्रों का ज्ञान आत्मा के स्वरूप को समझने के लिये जरूरी है। जानने के बाद व्यवहार नय का आश्रय छोड़कर शुद्ध निश्चयनय के द्वारा अपने आत्मा का मनन करें। मनन करते समय भी मन आलंबन है। मनन करते-करते जब मनन बंद होगा व उपयोग स्वयं स्थिर हो जायेगा तब स्वानुभव होगा तब ही आत्मा का परमात्म रूप दर्शन होगा व परमानंद का स्वाद आयेगा, अतीन्द्रिय आनंद की अनुभूति होगी फिर "मैं परमात्मा हूँ" ऐसा विकल्प न करते हुए भी परमात्मपने का अनुभव होगा। जिनेन्द्र परमात्मा कहते हैं कि ऐसे शुद्ध आत्मा का सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र ही मोक्षमार्ग है। इसी से संसार परिभ्रमण छूटता है, पूर्व कर्म क्षय होते हैं, नवीन कर्मों का आश्रव बंध नहीं होता, यही शुद्ध मुक्ति का कारण है। १६ गाथा २*-*-*-*-*-* मैं सिद्ध के समान परम निश्चल हूँ, योग की चंचलता से रहित हूँ, मन वचन काय के पंद्रह योगों से शून्य हूँ। मैं कर्म तथा नोकर्म का आकर्षण करने वाला नहीं । न मेरे में अजीव तत्त्व है, न आस्रव तत्त्व है, न बंध तत्त्व है, न संवर तत्त्व है, न निर्जरा तत्त्व है न मोक्ष तत्त्व है। मैं तो सदा ही शुद्ध जीवत्त्व का धारी एक जीव हूँ। सुख, सत्ता, चैतन्य, बोध यह चार ही मेरे निज प्राण हैं, जिनसे मैं सदा जीवित हूँ । इस तरह जो योगी निरंतर अनुभव करता है वही मोक्ष का साधक है। तीर्थंकरों, जिनेन्द्र परमात्मा के द्वारा जो दिव्य ध्वनि प्रगट होती है वही सिद्धांत का मूलस्रोत है, कि मैं आत्मा शुद्धात्मा परमात्मा ही हूँ। सर्वज्ञ जिनेन्द्र देव जिस आत्मा को ध्रुव कहा है, उसका जो जीव अवलंबन ले उसे उस ध्रुव स्वभाव में से शुद्धता प्रगट होती है, कर्म क्षय होते हैं। ध्रुव स्वभाव को लक्ष्य में लेने से पर्याय में ध्रुव स्वभाव दिखता है और इससे अज्ञान मिथ्यात्व संसार परिभ्रमण छूटता है। भगवान संत ज्ञानी महापुरुष कहते हैं कि आत्मा में शरीर संसार या रागादि हैं ही नहीं । आत्मा ममल स्वभावी, टंकोत्कीर्ण अप्पा ध्रुवतत्त्व है, सर्व प्रथम ऐसा निर्णय स्वीकार कर निज शुद्धात्म स्वरूप का अनुभव करना और अपने में दृढ़ अटल रहना ही मुक्ति मार्ग है। समाधान प्रश्न- हम इसके लिये प्रयत्न तो बहुत करते हैं, पूरा जोर लगाते हैं, पर इस स्थिति में रहते नहीं हैं, इसके लिये क्या उपाय है ? बार-बार इसी का चिंतन-मनन अभ्यास करना कि "इस शरीरादि से भिन्न मैं एक अखंड अविनाशी चेतन तत्त्व भगवान आत्मा हूँ यह शरीरादि मैं नहीं और यह मेरे नहीं।" सबका परिणमन स्वतंत्र अपने में अपने क्रम से चल रहा है, मेरा किसी से कोई संबंध नहीं है। "मैं ध्रुवतत्त्व शुद्धात्मा, सिद्ध स्वरूपी, परमब्रह्म परमात्मा हूँ" बस इस सत्य श्रद्धान पर दृढ रहना, फिर कुछ भी कैसा ही होता रहे, किसी से डरना नहीं, किसी की परवाह नहीं करना, किसी को महत्त्व नहीं देना, कुछ भी अच्छा बुरा न मानना, अपने ज्ञान स्वभाव में दृढ़ स्थित रहना ही एक मात्र उपाय है, इससे दृढ़ स्थिति बनती है। अभयपना ही मुक्ति है। शंकायें प्रश्न- इतना जानने समझने के बाद भी अभी भय, शल्य, होती हैं, पूर्ण अभयपना नहीं हो रहा, इसका क्या कारण है ? 货号 -

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