Book Title: Upasak Dashang Ek Anushilan Author(s): Sushila Bohra Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 2
________________ | 186 ... जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क सांगोपांग वर्णन इस अंग में उपलब्ध है। काम-भोग में आसक्त रेवती की भोगलिप्सा के वर्णन से बताया गया है कि जन साधारण को विषय-वासना का फल कितना दु:खदायी होता है। इसके चित्रण द्वारा नियमित संयमित जीवन जीने की प्रेरणा दी गई है। श्री आनन्द जी की स्पाटवादिता, कामदेव को दृढ़ता. अडिगता और सहनशीलना, कुण्डकौलिक की सैद्धान्तिक पटुता, सकड़ालपुत्र की मिथ्यात्वी देव-गुरु-र्ग के प्रति निस्पृहता आदि गुण अनुमोदनीय ही नहीं अनुकरणीय भी हैं। सभी श्रमणोपासक धन-वैभव, मान-प्रतिष्ठा और अन्य सभी प्रकार की पौद्गलिक सम्पदा से सम्पन्न एवं सुखी थे, लेकिन भगवान महावीर के उपदेशों का श्रवण करने से उनकी दिशा एवं दशा दोनों बदल गई। वे सभी पुद्गलानन्दी से आत्मानंदी बन गये। सभी श्रमणोपासकों के पास गोधन का भी प्राचुर्य था। इससे यह प्रकट होता है कि गो-पालन का उस समय बहुत प्रचलन था तथा जैन भी खेती तथा गो-पालन के काम किया करते थे। अभ्यंगन विधि के परिमाण में शतपाल तथा सहस्रपाक तेलों का उल्लेख है। इसका तात्पर्य है कि आयुर्वेद काफी विकसित था। आनन्द ने श्रावकव्रत धारण करते समय खाद्य, पेय, भोग, ठपभोग आदि का जो परिमाण किया था, उसमें उस समय के समृद्ध रहन-सहन पर भी प्रकाश पड़ता है। पिनगृह से कन्याओं के विवाह के समय सम्पन्न घरानों से उपहार के रूप में चल-अचल सम्पत्ति देने का भी रिवाज था, जिस पर पुत्रियों का अधिकार रहता था जिसे आज स्त्रीधन कहा जाता है। यह महाशतक के जीवन से पता चलता है। वस्तुओं का लेन-देन स्वर्णमुद्राओं से होता था, दास-- दासी रखने का भी रिवाज था। इस तरह भगवान महावीर के समय में भारतीय समाज के समृद्ध व्यवस्थित जीवन का चित्रण देखने को मिलता है। हालांकि प्रत्यक्ष रूप से साधनामय जीवन से इनका कोई संबंध नहीं है, लेकिन सुखी एवं समृद्ध गृहस्थ भी जीवन के उत्तरार्द्ध में इन सब सुखों को त्यागकर किस प्रकार प्रौषधशालाओं में एकान्त में बैठकर कठिन श्रावक प्रतिमाओं को अंगीकार कर जीवन सार्थक करते थे, यह हम लोगों के लिये दीपशिखा का काम करता है : ऐसे श्रमणोपाराकों का संक्षिप्त जीवन यहाँ प्रस्तुत है (1) आनन्द श्रावक __ भगवान महावीर का अनन्य उपासक आनन्द श्रावक वाणिज्य ग्राम मगर में अपनी रूपगुण सम्पन्न पत्नी शिवानन्दा के साथ सुखपूर्वक रह रहे थे। आनन्द श्रावक के पास १२ करोड़ सोनैया की धनराशि थी जिसके तीन भाग किये हुए थे। ४ करोड़ व्यापार में, ४ करोड़ भन भंडारों में, ४ करोड़ घर-बिखरी में लगा हुअ था तथा चालीस हजार गायों का पशुधन था। इतनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10