Book Title: Upasak Dashang Ek Anushilan Author(s): Sushila Bohra Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 1
________________ उपासकदशांग : एक अनुशीलन श्रीमती सुशीला बोहवा उपासकटशां" सूत्र में भगवान महावीर के आनन्द, कदेव आदि प्रमुख १० श्रमगोपासकों के जीवन-चरित्र का निरूपण है। सभी श्रावकों ने भगवान महावीर में उपदेश---श्रवणकर १२ व्रत अंगीकार करते हए अपने जीवन को धर्म-साधना में समर्पित का दिया भावद तन्नों में उनकी दृढ श्रद्धा थी तथा गेडो की धन मागदा होते हुए भी उन्होंने त्यागमय जीवन की ओर से कदम बढ़ाए कि वे देवों द्वारा दिए गए उपसर्गों से भी विचलित नहीं हुए श्री स्थानकवासी जैन स्वाभ्याय संभ की संयोजिका श्रीमती सुशीला जी बोहर ने उपासकदशांग सू की विशेषताओं को अपने आलेख में उभारने का प्रयत्न किया है : -सम्पादक तीर्थकरों द्वारा उपटिष्ट एवं गणधरों द्वारा सूत्र रूप में प्रस्तुत द्वादशागी वाणी हमको आगम प्रसादी के रूप में प्राप्त हुई है। इसके माध्यम से भव्य जीवों को संसार सागर से पार होने के लिए द्रव्यानुयोग, चरणानुयोग, गणितानुयोग एवं धर्मकथानुयोग विविध रूप में समझाया गया है। जिस प्रकार माता-पिता अपने बच्चों को उत्थान हेतु विविध प्रकार से समझाते हैं उसी प्रकार प्रभु महावीर ने भव्य जीवों को जन्म-मरण के चक्र से बचाने हेतु कई प्रकार से समझाया है। उपासकदशांग सूत्र धर्मकथानुयोग के रूप में प्रस्तुत हुआ। यह अंगसूत्रों में एकमात्र ऐसा सूत्र है जिसमें सम्पूर्णतया श्रमणोपासक या श्रावक जीवन की चर्या है। जैन दर्शन में साधना की दृष्टि से धर्म को अनगार और आगार धर्म दो रूपों में प्रस्तुत किया गया है। अनगार धर्म में सभी पाप प्रवृत्तियों का तीन करण और तीन योग से त्याग तथा अहिंसादि पांच महाव्रत का पालन आवश्यक बताया है। इसमें किसी प्रकार की छूट (आगार) नहीं होती। महाव्रतों की साधना तलवार की तीक्ष्ण धार पर चलने के समकक्ष है, जिसे सामान्य व्यक्ति अंगीकार नहीं कर पाता। आगार सहित व्रतों का पालन करने वालः अणुव्रतो या श्रमणोपासक कहलाता है। उपासक का शाब्दिक अर्थ है : उप-समीप बैठने वाला जो श्रमण के समीप बैठकर उनसे सद्ज्ञान ग्रहण कर साधन को अर अग्रसर होता है वह श्रमणोपासक कहलाता है। उपासकदशा में ऐसे ही आनन्द, कामदेव आदि १० उपासकों का वर्णन है जिन्होंने प्रभु महावीर के उपदेशों से प्रेरित हो अपना जीवन सार्थक कर लिया। उपासकदशांग में वर्णित सभी श्रावक प्रतिष्ठित, समृद्धिशाली एवं वद्धिमान थे उनका जीवन अनुशासित, व्यवस्थित एवं धर्मनिष्ठ था! गृहस्थ जोबन में रहते हुए पानी में कमलवन कैसे रहा जा सकता है, उसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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