Book Title: Upasak Dashang Ek Anushilan Author(s): Sushila Bohra Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 5
________________ उपासकदशांग : एक अनुशीलन (4) सुरादेव सुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वामी से सुरादेव श्रावक की यशोगाथा बताते हुए कहा कि वाराणसी नगरी में समृद्धिशाली सुरादेव गाथापति अपनी पत्नी धन्ना के साथ सुखपूर्वक रह रहे थे। उनके पास १८ करोड़ का धन था, १ / ३ भाग घर बिखरी, १/३ भाग व्यापार एवं १/३ भाग सरक्षित राशि तथा ६ व्रज गायों के यानी १० हजार गायों के एक व्रज के हिसाब से ६० हजार गायें थी। उन्होंने भी भगवान महावीर की देशना सुनकर श्रावक धर्म स्वीकार किया और कामदेव को भांति पौषधशाला में धर्मप्रज्ञप्ति का पालन करने लगे । देवलोक में इन्द्र से उनकी प्रशंसा सुनकर एक देव उनकी परीक्षा लेने आया और बोला- यदि तू श्रावक व्रत का त्याग नहीं करता तो तेरे तीनों पुत्रों को मार कर उबलते तेल में तल कर तेरे शरीर पर डालूंगा एवं वैसा ही किया । फिर भी सुरादेव ने सगभावपूर्वक वेदना सहन की और धर्म में स्थिर रहे । तब देव ने कहा कि तेरे अन्दर १६ महारोगों - श्वास, खांसी, ज्वर, दाद, शूल, भगंदर, बवासीर, अजीर्ण, दृष्टिशूल मस्तकशूल, अरोचक, आंख की वेदना, कान की वेदना, खाज, उदर रोग और कोढ़ का प्रक्षेप करता हूँ। दो तीन बार कहने पर वे उसे अनार्य पुरुष समझकर पकड़ने के लिये झपटे तो देव आकाश में उड़ गया तथा खंभा हाथ में आया। शोरगुल सुन पत्नी धन्ना आई। उसने देवकृत परीषह बताकर उसका समाधान करते हुए आलोचना, प्रायश्चित्त करने की सलाह दी। चुलनीपिता की तरह उन्होंने भी प्रायश्चित्त करते हुए २० वर्ष की श्रावक पर्याय का पालन कर एक मास की संलेखना कर प्रथम देवलोक के अरुणकान्त विमान में उत्पन्न हुए। वहाँ चार पल्योपम की आयु पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होंगे। (5) श्रमणोपासक चुल्लशतक भगवान महावीर के विचरण काल में आलभिका नामक नगरी में जितशत्रु राजा राज्य करते थे। वहां चुल्लशनक नामक ऋद्धिसम्पन्न गाथापति रहता था। उसके पास सुरादेव की भांति १८ करोड़ का धन था, जिसका तीसरा भाग घर-बिखरी, तीसरा भाग व्यापार, तीसरा भाग भंडार में लगा हुआ था तथा दस दस हजार गायों के ६ व्रज थे। वे भी कामदेव की भांति पौषधशाला में भगवान द्वारा बताई गई विधि के अनुसार धर्मध्यान करने लगे। मध्यरात्रि में देव का आगमन हुआ तथा सुरादेव की तरह तीनों पुत्रों को मारने का भय दिखाया एवं वैसा ही किया तथा सम्पूर्ण सम्पत्ति को सारी नगरी में बिखेरने का भय दिखाया। चुल्लशतक उसके तीन बार वचन सुनकर उस देव को अनार्य पुरुष समझकर पकड़ने उठे। शेष सुरादेव की तरह पत्नी कोलाहल सुनकर आयी, प्रायश्चित्त किया । यावत् अरुणसिद्ध विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए। चार पल्योपम की स्थिति पूर्ण कर वे महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध एव मुक्त होंगे। Jain Education International 189 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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