Book Title: Upasak Dashang Ek Anushilan
Author(s): Sushila Bohra
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 6
________________ | 190 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क (6) श्रमणोपासक कुण्डकोलिक कम्पिलपुर नगर में कुण्डकोलिक नामक गाथापति अपनी पत्नी पूषा के साथ रहता था। चुल्लशतक की भाति १८ करोड़ की धनराशि थी एवं उसी तरह धन के तीन भाग करके उपयोग किया। ६० हजार गायें थी भगवान को वाणी सुन बारह व्रत धारण कर साधु-साध्वियों को प्रासुक एषणीय आहार पानी बहराता हुआ रहने लगा। एक दिन वे दोपहर को अशोक वाटिका में गये। अपनी मुद्रिका एवं अन्तरीय वस्त्र उतारकर धर्मविधि से चिन्तन करने लगे। उसी समय एक देव आया तथा मुद्रिका एवं वस्त्र उठाकर कहने लगा--. मखलिपुत्र गोशालक की धर्मविधि अन्छी है। उसमें उत्थान, बल, वीर्य, पुरुषाकार पराक्रम आदि कुछ भी नहीं हैं। सभी भावों को नियम से गारा गया है, इस तरह नियतिवाद का पक्ष प्रस्तुत किया। यह बात अच्छी है न तो कोई परलोक है, न पुर्नजन्म। जब वीर्य नहीं तो बल नहीं, कर्म नहीं, बिना कर्म के कैसा सुख और दुःख? जो भी होता है भवितव्यता से होता है। तब कुण्डकोलिक ने कहा- तुम्हें यह देव ऋद्धि आदि नियति से प्राप्त हुए हैं या पुरुषाकार पराक्रम से? यदि देवभव के योग्य पुरुषार्थ के बिना ही कोई देव बन सकता है तो सभी जीव देव क्यों नहीं हो गये? ऐसा कथन सुनकर देव निरुत्तर हो गया तथा वस्त्र एवं नामांकित अंगूठी रखकर वापिस चला गया। भगवान महावीर उस समय कम्पिलपुर पधारे तथा कुण्डकोलिक की प्रशंसा करते हुए कहा कि- सभी साधु-साध्वियों को अन्य तीर्थयों के समक्ष अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण, अख्यान से अपने मत को पुष्ट करना चाहिये।। श्रावक पर्याय के १४ वर्ष बीनने पर पन्द्रहवें वर्ष में कामदेव की भांति ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का मुखिया बनाकर कुण्डकोलिक धर्मविधि से आराधना करते हुए ग्यारह प्रतिमाओं को धारण कर एक मास की संलेखना एवं संथारा कर प्रथम सौधर्म देवलोक के अरुणध्वज विमान में ४ पल्योपम की स्थिति वाले देव हुए। वहां से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होंगे। (7) श्रमणोपासक सकडालपुत्र पोलासपुर नामक नगर में गोशालक मन को मानने वाला सकडालपुत्र नामक कुम्हार अपनी पत्नी अग्निमित्रा के साथ रहता था। उसके पास एक करोड़ स्वर्णमुद्रायें निधान में, एक करोड़ व्यापार में, एक करोड़ की घर बिखरी में थी, दस हजार गायों का एक व्रज था तथा नगर के बाहर मिट्टी के बर्तन बनाने की पांच सौ दुकानें थी। जिनमें कई वैतनिक नौकर काम करते थे। एक दिन वह अशोक वाटिका में गोशालक की धर्मविधि का चिन्तन करने लगा। तभी वहाँ एक देव आया और आकाश से ही बोलने लगा “कल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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