Book Title: Two Unpublished Caitya Paripatis on Citod Tirtha
Author(s): Jitendra B Shah
Publisher: Z_Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_1_002105.pdf and Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_2

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Page 19
________________ 432 J. B. Shah Jambu-jyoti (३) जयहेमशिष्यकृत चितोड चैत्यपरिपाटी २ ३ गोअम गणहरराय पायपंकय पणमेवी, हंसगमणि मृगलोचणी ए सरसति समरेवी, पाए लागीनई वीनवं ए दिउ मझ मति माडी, चित्रकोट नयरह तणी ए रचउं चेत्रपवाडी. मालव गूजर मारूआडि दक्षिण नइ लाड, देस सवे माहे मूलगु ए मंडण मेवाड, एक लोचन पृथिवी तणुं ए चित्रकोट भणीजई, अवर न बीजं जगह माहि इम वयण सुणीजइ. गढ मढ मंदिर मालिआ ए उंचा अति सोहई, सात पोलि ओलेइं भली ए देखी मन मोहइं, चउपट चिहुं दिसि च्यारि पोलि दीसईं अतिचंग, उत्सव रंग वद्धांमणां ए नितु वाजई मृदंग. दाखपानना मंडवा ए सेलडी वाडी वन, वापी कूप खडोकली, ए दीसइं राजभवन, कलस सोवनमय झगमगई ए कोसीसां-ओलि, कोरणिमंडित थंभश्रेणि घडीआला पोलि नयरसिरोमणि चित्रकूट उंचउ सुविशाल, धण कण कंचण भरिअ भूरि चउटां चउसाल, शिव जिन शासन देहरा ए मुनिवर-पोसाल, श्रावक श्रावी पुण्य करई मन रंगि रसाल. तिणि नयरि सीसोदिआं ए कुलमंडण जाण, गढपति गजपति छत्रपति सहु मानइ आण, बंदी जय ज उचरई ए वाजइं नीसाण, राज करइ रायमल्ल राण तेजिं जिसिउ भाण. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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