Book Title: Two Unpublished Caitya Paripatis on Citod Tirtha Author(s): Jitendra B Shah Publisher: Z_Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_1_002105.pdf and Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_2Page 21
________________ 434 J. B. Shah Jambū-jyoti पहरीय पीत पटूलडीअ खीरोदक सार, कस्तूरी चंदन घसीअ केसर घनसार, चंदन मरूउ मालतीय बहु मूल अपार, धामी धामिणि भाव-सिउंअ पूजइ सविचार, उसवंस-कुल-मंडणउ ए बालागर सुविचार; त्रिसलानंदन थापिउ ए, निर० भरई सुकृतभंडार. म० १६ त्रिणि सई अट्ठावीस बिंब, ते यलई शोक, तोरण शिखरह दंडकलस कोरणि अति रोक, धज-पताक ए इम कहइ, संभलज्यो लोक, वीर जिणंद न भेटसिई, तेह जीविउं फोक, जिमणइ पासइ पोखिआ ए, सामी पास सुपास; रतनागरि रंगि थापीआ ए, नि० पूरवइ मननी आस. म० १७ खेलामंडपि पूतलीअ नाचंती सोहई, रंभा अप्सर सारखीअ कामीमन मोहई, हुंबड पूना तणी धुअ तिणि ए मति मंडीअ, कीरतिथंभ करावि जात माहरी सूखडीअ, सात अँहि सोहामणीइ बिंब सहस दोइ देखि, पेखी पाछा संचरिआ ए नि० वंदी वीर विशेष. . म० १८ पास जिणिंद दिगंबरई तिहां नव सई बिंब, चंद्रप्रभ च्यालीस-सिउंअ पूजई अवलंब, पनर बिंब-स्युं नाभिराय-सुत अर्बुद-सामिअ. मलधारई श्री चंद्रप्रभ पूरई मन कामी, पनर बिंब पूजी करी ए सुराणईं सम चंद; सतर बिंब सोहामणइ नि० सामी सुमति जिणिद. म०१९ वरहडीइ श्री सुमति देव उगुणपंचास, संघवीइं धनराजे जेह पूरी मनि आस, एकसउ चउत्रीस बिंब-सिउं पूजीजइ संति, डागलिई जिणदत्त साहि पूरी निय खंति, लोला-भवणि पेखीया ए संति जिणेसर पा[स]य, अटावन्न मूरति भली ए, नि० सेवू अनुदिन पाय. म० २० वस्तु वीर भवणि वीर भवणि करी महापूजि, सहसकोटि पेखी करी दिगंबरइ बहु बिंब पामीय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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