Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 01 Author(s): Bacchulal Avasthi Publisher: Books and Books View full book textPage 9
________________ (vii) संक्षिप्त व्युत्पत्ति देकर अर्थ का स्पष्टीकरण चाहा गया है । व्युत्पत्तिगत पूर्णता के लिए 'तुलसी निरुक्ति कोश' की प्रतीक्षा करनी चाहिए। इसी प्रकार दार्शनिक शब्दों का सम्पूर्ण अर्थवृत्त नहीं लिया गया । ईश्वर के अनुग्रह से यदि 'तुलसी - दर्शन - कोश' भी बनाया जा सका तो यत्किञ्चित् ऋणमुक्ति हो सकेगी । यों तो इस प्रकार के संकलनात्मक कार्य की भूमिका अनपेक्षित ही है तथापि कुछ आत्मनिवेदन का ब्याज तो इससे मिल ही जाता है । इस सन्दर्भ में सम्मान्य श्री त्रिलोचन शास्त्री का मुझे स्मरण सदा आता है । उन्होंने अनायास बिना किसी प्रसङ्ग के एक अर्धाली का अर्धांश पढ़ा 'जहँ सुख सफल सकल दुख नाहीं ।' शास्त्री जी ने ही अनुपपत्ति का विवरण दिया कि निषेध के साथ आने वाला 'सकल' यदि सर्व पर्याय है तो 'सब दुःखों के न होने' का आशय 'कुछ दुःखों का होना' होगा जो वाक्य का तात्पर्य नहीं है, अत: 'सकल' को 'शकल' मानकर अर्थ करना चाहिए | 'शकल' का 'खण्ड' अर्थ है, अतः जरा-सा भी दुःख नहीं है, ऐसा अभिप्राय बनता है । अवधी में शकार के लिए सकार ही चलता है, अतः कोई अनुपपत्ति नहीं है। इस ग्रन्थ के प्रकाशन की चिन्ता मैंने छोड़ दी थी परन्तु मेरे मित्र डा० हरिसिंह सेंगर को चिन्ता थी । उन्होंने 'बुक्स ऐन्ड बुक्स' के व्यवस्थापक श्री मधुकर जी से मिलकर प्रकाशन की व्यवस्था की, एतदर्थ मैं उनको अपनी शुभाशंसाओं से अभिषिक्त करता हूं । सबसे बड़ा आभार श्री मधुकर जी का है जिन्होंने व्यवसायबुद्धि से ऊपर उठकर तत्परता के साथ शीघ्र प्रकाशित किया । इस ग्रन्थ में जो अच्छाइयाँ हैं उनके यशोभागी जन्म तथा विद्या की वंशपरम्परा के पुरुष हैं और त्रुटियों का भार मुझ पर मानकर - 'छमिह सज्जन मोरि ढिठाई ।' कालिदास अकादमी उज्जैन (म०प्र०) श्रावणी २०४७ विद्वज्जनों का वशंवद बच्चूलाल अवस्थीPage Navigation
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