Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books

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Page 14
________________ तुलसी शब्द-कोश अँगुरियां : सं० स्त्री० बहु० (सं० अङ्ग रिकाः >> प्रा० अंगुरियाओ >> अ० अंगुलियाँ । गी० १.३२.१ 1 अँगुली : अंगुलि । दो० ५२७ अंगुष्ठ: सं०पु० (सं० अङ्ग ुष्ठ) अंगूठा । गी० ७.१७.४ अचइ : पूकृ० (सं० आचम्य ) आचमन करके, मुख आदि धोकर । 'अँचइ पान सब काहूं पाए ।' मा० १.३५५.२ 1 ॐचन : आ० भावा० (दे० अँचव ) । आचमन कीजिए, पीजिए । 'अँच इअ नाथ कहहिं मृदु बानी ।' मा० २.११५.१ ई : भू स्त्री० | पी डाली । 'लाज अँचई घोरि - दिन० १५८.६ अचव अचव : अचवँ ( प्रक्षालन करना, पीना) पीता है । 'स्वाति को ।' दो० ३०६ अचवहु : 'अँचव' + म०व० । तुम पियो । 'सोभा सुधा अचवहु ।' गी० २.२३.२ जो अँचवें । जल अँचवायउ : भूकृ पु ं० कए० । आचमन कराया, पिलाया । पामं १३५ जोरि : पूकृ० । अँजलि में भर कर समेट कर । हथिया कर । 'कृ सिला... दंभ लेत अजोरि ।' दिन० १५८.४ जोरी : सं० [स्त्री० । प्रकाश । 'खद्योत अँजोरी ।' मा० ३.११.२ तावरि : सं० स्त्री० (सं० अन्त्रावलि > प्रा० अतावलि) आंतों की लड़ी। 'गल तावर मेल हीं ।' मा० ६.८१ छं० अथइहि : आ० ए० भ० । अस्त होगा । 'उदित सदा अँथ इहि कबहूंना मा० २.२०१.२ अँथयउ : भूकृ० पु ं० कए । अस्त हो गया । रबि अँथयउ, मा० २.१५४.३ अदेसा : सं० पु ं० (फ्रा० अन्देशः) चिन्ता, सोचा । मा० १.१४.१० अदेसो : 'अंदेसा' + कए । एकमात्र चिन्ता । गी० २.८७.४ अधियारा, रा, अaियार : सं० पुं० (सं० अन्धकार > प्रा० अंधयार ) अंधेरा । मा० १.१५६.८, बर० ३६ अघिरी : (१) सं० स्त्री०= अधिआर । 'अगर धूप बह जनु अंधभरी ।' मा० १.१६५.५ (२) वि० स्त्री० (सं० अन्धकारी > प्रा० अंधियारी ), अन्धेरी, काली, अन्धा बना देने वाली । 'मानहुँ कालराति अँधिआरी ।' मा० २.८३.५ अधिआ : क्रि० वि० । अन्धेरे में । ' अवध प्रबेसु कीन्ह अंधिआरें मा० २.१४७.५

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