Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ (vi) लिए ये ही दो 'प्राइमर' पाठ्य-पुस्तकें बनीं । बाबा मुझे यदा-कदा अर्थ भी बताते थे जिससे तुलसी-साहित्य में प्रयुक्त शब्दों का अनेकत्र अर्थज्ञान हो गया। यही इस कोश की पीठिका है जो कौमार अवस्था में बनी थी और अब एक स्वरूप ले सकी। प्रायः पन्द्रह वर्ष पूर्व श्रीमान डा० भगीरथ मिश्र की व्यावसायिक प्रेरणा प्राप्त कर मैंने 'तुलसीकोश' का निर्माण किया था। मेरे हस्तलेख के रूप में यह रखा रहा । गत वर्ष हरिसिंह सेंगर के सौजन्य से श्री मधकर जी मिले और प्रकाशनार्थ ग्रन्थ की अपेक्षा व्यक्त की। वर्तमान स्थिति में इन्हीं के अनुग्रह से यह उपयोक्ताओं तक पहुंच रहा है। लेखक का प्रयास रहा है कि जितने प्रकार के शब्द एवं शब्दों के रूप तुलसीसाहित्य में आये हैं उन सबका सार्थक परिचय इस कोश द्वारा हो जाय । उदाहरणार्थ- 'कर उ' तथा 'करह' या 'करउँ' तथा किरहं' में रूप के साथ अर्थ में भी अन्तर है जिसका स्पष्ट निर्देश अपेक्षित माना गया है । इस प्रकार इसमें 'लेक्सिकन' के स्थान पर एक प्रकार से 'मार्फीम' को महत्त्व मिला है जो कोशविज्ञान के क्षेत्र में नया प्रयोग है । इसीलिए 'तुलसीकोश' नाम रखा गया है। एक और उदाहरण लिया जा सकता है-राम, राम, रामहि, रामहि में रूपान्तर के साथ अर्थान्तर पाया जाता है । 'कृपा' मूल नाम है जिससे 'कृपा' रूप बनता है और 'कृपा से' का अर्थ देता है । 'हृदय' = 'हृदय से' या 'हृदय में'। यह कोशदृष्टि अपनाने से यथापेक्ष अर्थ समझने में सुविधा होती है । क्रियापदों में विशेष द्रष्टव्य हैकरइ वह करता है। करहिं वे करते हैं। करसि तू करता है। करह तुम करते हो। करउँ मैं करता हूं। करहुं हम करते हैं। इस ‘पदकोश' के निर्माण में समस्त आचार्य-परम्परा का योग है जिसमें रह कर मैंने संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश भाषाओं और उनके व्याकरणों को सीखा। इनके अतिरिक्त उर्दू-भाषा से भी कुछ सहायता मिली जिसे बाल्यावस्था में पहली जबान' के रूप में जाना था। गोस्वामी जी ने उर्दू के शब्दों का सार्थक प्रयोग किया है जिसे 'कबुली' शीर्षक पर देखा जा सकता है। अनेक शब्द ऐसे हैं जो एक ही स्थान पर अनेक (सन्दिग्ध-प्राय) अर्थ देते हैं जिनका एक ही अर्थ दिया गया है। इसका कारण है कि अनावश्यक विस्तार की उपेक्षा की गयी है। जैसे-'भरनी' शब्द के अनेक अर्थों में एक ही मान्य किया गया है। सभी अर्थों की अपेक्षा हो तो 'मानस-पीयूष' आदि का अवलोकन करना चाहिए।

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 564