Book Title: Tulsi Prajna 2008 07 Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 2
________________ धर्म प्रधान : सम्प्रदाय गौण जितना बल उपासना पर दिया जाता है, उससे अधिक बल यदि क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, अकिंचन और ब्रह्मचर्य पर दिया जाये तो धर्म प्रधान हो सकता है और सम्प्रदाय गौण । 1. धार्मिक वह हो सकता है, 2. धार्मिक वह हो सकता है, 3. धार्मिक वह हो सकता है, 4. धार्मिक वह हो सकता है, 5. धार्मिक वह हो सकता है, 6. धार्मिक वह हो सकता है, 7. धार्मिक वह हो सकता है, 8. धार्मिक वह हो सकता है, 9. धार्मिक वह हो सकता है, सहिष्णु हो । असहिष्णुता से विभाजन होता है, एकीकरण नहीं। जो मृदु हो - जाति, कुल, विद्या, ऐश्वर्य आदि से हीन लोगों का तिरस्कार न करे । मद से विभाजन होता है, एकीकरण नहीं । जो ऋजु हो, सरल हो, पूर्ण व्यवहार से विभाजन होता है, एकीकरण नहीं । जो अर्थ-लोलुप न हो । अर्थ-लोलुपता से विभाजन होता है, एकीकरण नहीं । जो सत्यभाषी हो । Jain Education International असत्य से विभाजन होता है, एकीकरण नहीं । जो संयमी हो । असंयम से विभाजन होता है, एकीकरण नहीं। जो सत्प्रवृत्ति - -परायण हो । असत् प्रवृत्ति से विभाजन होता है, एकीकरण नहीं । जो त्यागशील हो । संग्रह से विभाजन होता है, एकीकरण नहीं। जो अकिंचन हो- शरीर के प्रति अनासक्त हो । आसक्ति से विभाजन होता है, एकीकरण नहीं । 10. धार्मिक वह हो सकता है, जो ब्रह्मचारी हो - इन्द्रियविजेता हो । इन्द्रिय-लोलुपता से विभाजन होता है, एकीकरण नहीं । इनके अभ्यास से कर्म का दोष धुलता है और अनेकता एकता में बदलती है जिसकी आज बहुत बड़ी अपेक्षा है। अनुशास्ता आचार्य तुलसी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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