Book Title: Tulsi Prajna 1975 07
Author(s): Mahavir Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 4
________________ (४) जैन विद्या परिषद का यह अधिवेशन इस संगोष्ठी के आयोजन के लिए आचार्यश्री तुलसीजी के प्रति आदर व्यक्त करता है तथा विश्व भारती, लाडनू के अधिकारियों की सराहना करता है । अधिवेशन में उपस्थित विद्वानों का यह अनुरोध है कि भविष्य में इस प्रकार की संगोष्ठियों का आयोजन कर इस शृङ्खला को जारी रखा जाय तथा उच्च मानदण्डों के अनुरूप संगोष्ठियों को अधिक व्यवस्थित एवं सुनियोजित करने के प्रयत्न किये जायं । ( ५ ) प्रस्तुत संगोष्ठी का आयोजन भगवान् महावीर के जीवन तथा जैन दर्शन और विज्ञान विषयों पर किया गया था। सेमिनार में प्रस्तुत किये गये निबन्धों के आधार पर यह अधिवेशन अनुभव करता है कि भगवान् महावीर के जीवन से सम्बद्ध प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश ग्रन्थों में उपलब्ध मूल सामग्री को संकलित करके जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित किया जाय । ( ६ ) इसी प्रकार महावीर के जीवन तथा दर्शन पर अब तक प्रकाशित साहित्य की एक अद्यावधि विस्तृत सूची ( बिबलियोग्राफी ) सेमिनार में पठित निबन्धों के साथ जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित की जाय । ( ७ ) इसी प्रकार विज्ञान के विभिन्न विषयों पर भी विस्तृत सूची ( बिबलियोग्राफी ) संगोष्ठी में पठित विज्ञान सम्बन्धी निबन्धों के साथ दूमरे खण्ड के रूप में प्रकाशित की जाय । डा० गोकुल चन्द्र जैन, बनारस ने उपरोक्त सुझावों को विद्या परिषद के खुले अधिवेशन में रखा जिसे जैन विश्व भारती के शोध विभाग के मानद निदेशक डा० महावीर राज गेलड़ा ने स्वीकृत किया । तदनुसार स्व० डा० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये को जैन विद्या मनीषी की मरणोत्तर मानद उपाधि से श्रीचन्द जी रामपुरिया को भी जैन विद्या सम्मानित किया । इसका विधिवत आयोजन का निश्चय किया गया । सम्मानित किया। श्री मनीषी की उपाधि से निकट भविष्य में करने तुलसी प्रज्ञा का विशेषांक स्व० डा० ए० एन० उपाध्ये तथा स्व० डा० हीरालाल जैन की स्मृति में प्रकाशित होगा । विद्वान बन्धुओं से आग्रह है कि इनके सम्बन्ध में रचनात्मक सामग्री शीघ्र भेजें । Jain Education International भवदीय, डा० महावीर राज गेलड़ा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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