Book Title: Titthogali Painnaya
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Shwetambar Jain Sangh

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Page 13
________________ ही नहीं सभी विषयों के शोधार्थी इस ज्ञानसूर्य से प्रकाश और मार्गदर्शन प्राप्त कर अपने लक्ष्य में सफल काम हो सकते हैं । लाख-लाख प्रणाम है इम ज्ञान सूर्य को सरस्वती के महान् उपासक को। ये उद्गार हैं पंन्यासप्रवर श्री कल्याणविजय जी महाराज के पांडित्य एवं प्रतिभापूर्ण महान व्यक्तित्व से प्रभावित एक उच्चकोटि के विद्वान के। जन्मना प्रभावों प्रौर अभियोगों में पला हुषा निराश्रित शिशु.अपने दृढ़ संकल्प और सतत परिश्रम से इतना महान् बन गया, यह अपने पाप में एक बड़ी ही अद्भुत, बड़ी ही प्रेरक कहानी है. जो प्रत्येक मानव को यह विश श्वास दिलाती है, उसकी धमनियों में कुछ कर गुजरने के लिये एक अद्भुत विद्य त का संचार करती है । अति संक्षेप में उस कर्मयोगी महासन्त का जीवन परिचय 'स्वान्तःसुखाय परहिताय च' दिया जा रहा है पंन्यासप्रवर श्री कल्याणविजयजी महाराज साहब का जन्म विक्रम सं० १९४४ में भूतपूर्व सिरोही राज्य के लास नामक ग्राम में प्राषाढ़ कृष्ण अमावस्या को मृगशिरा नक्षत्र में हुप्रा । अापके पिता का नाम किशनरामजी और माता का नाम कदीबाई था। पाप ब्राह्मण जाति के जागरवाल पुरोहित नाम से विख्यात उच्च कुल में उत्पन्न हुए । जिस समय पाप १२ वर्ष के प्रबोध बालक थे उसी समय वि० सं० १६५६ मैं आपके पिता का स्वर्गवास हो गया । वि० सं० १९५६ में भारत में बड़ा ही भयानक दुष्काल पड़ा, जिसमें भूख ने ताण्डव नृत्यकर भीषण नरसंहार किया। छपना काल का नाम सुनते ही सिहर उठने वाले भुक्तभोगी प्राज भी विद्यमान हैं । असहाय विधवा को अपना और अपने बच्चों का पेट भरने के लिये लास गांव छोड़ना पड़ा। चरित्रनायक के जन्म से पूर्व ही इनके प्रग्रज का अल्पायु में अवसान हो गया था अतः माता-पिता ने इन्हें जन्म के पश्चात् तराजू में इस विश्वास से तोला कि रूढ़िवादी इस प्रकार की प्रक्रिया से उनकी संतान जीवित रह जाय। उस अन्धविश्वास का प्रतिफल भी विश्वासजनक ही रहा। पापके पश्चात् आपको एक बहिन पौर उसके पश्चात् एक भाई का जन्म हुमा । प्रापको जन्म ग्रहण करते ही तराजू में तोला गया था अतः प्रापका नाम तोलाराम रखा गया। छपने काल में मापकी माता इन्हें, इनकी छोटी बहिन और उससे छोटे भाई हेमाजी को लेकर देलदर नामक ग्राम में पहुंची। चिन्तकों ने कहा है--मापत्ति जब पाती है तो अकेली नहीं पाती, अपने पूरे लश्कर के साथ पाती है। इधर पिता को मृत्यु, पेट भरने के लिए

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