Book Title: Titthogali Painnaya
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Shwetambar Jain Sangh

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Page 12
________________ [3] लाइब्र ेरी भण्डार को देखा । वे गुरुदेव के प्रगाध ज्ञान एवं गरिमापूर्ण बहुमुखी प्रतिभा से प्रत्यन्त प्रभावित हुए। उस समय जो उनके मुख से उनके हृदय के जो उद्गार निकले, उनसे पंन्यासप्रवर कल्याणविजय जी म० सा० की अतिमानव महानता का सहज ही प्राभास हो जाता है । प्रतः प्रति संक्षेप में उनके उन उद्गारों का उल्लेख किया जा है। उन विद्वान ने कहा - "महाभारत के शान्ति पर्व में एक बड़ा ही हृदयग्राही उल्लेख उपलब्ध होता है । भीष्म पितामह कुरुक्षेत्र के रंगांगण में शरशय्या पर लेटे हुए हैं । शिखण्डी M को आगे कर अर्जुन द्वारा किये हुए गांडीव धनुष के शरंप्रहारों से संसार के इस अप्रतिम योद्धा के पृष्ठभाग का रोम-रोम छलनी के छेदों के समान बिधा हुआ है । देह के पिंजरे में इतने गहरे इतने अधिक मर्मान्तिक व्रण गाण्डीव के अमोघ बाणों से हो रहे हैं कि प्रारण पखेरू को उस पिंजरे में से उड़ जाने के लिए कोई किचित्मात्र भी बाधा नहीं है । पर बालब्रह्मचारी भीम इच्छामृत्यु का वरण करने के लिए कृतसंकल्प हैं और सूर्य के दक्षिणायन माने की प्रतीक्षा कर रहे हैं । कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा— कौन्तेय ! संसार का ज्ञानसूर्य प्रस्त होना ही चाहता है । महान् रणयोगी भीष्म सूर्य के उत्तरायण में प्राते ही देह त्याग देंगे । तुम्हें संसार के किसी भी विषय का; धर्म के मर्म का प्रथवा विमुक्ति का ज्ञान प्राप्त करना हो तो उनके चरणों में बैठ कर सूर्य के उत्तरायण में आने से पहले-पहले, वह ज्ञान प्राप्त कर सकते हो। उस नरश्रेष्ठ भीष्म के दिवंगत होते ही विशिष्ट ज्ञान का सूर्य अस्त हो जायगा - तस्मिन् हि पुरुषव्याघ्रे कर्मभिर्व दिवंगते । भविष्यति मही पार्थ, नष्टचन्द्र व शर्वरी || २० तद् युधिष्ठिर गांगेय, भीष्मं भीमपराक्रमम् । प्रभिगम्योपसंगृह्य पृच्छ यत्ते मनोगतम् ॥ २१ तस्मिन्नस्तमिते भीष्मे, कोरवाणां धुरंधरे । ज्ञानान्यस्तं गमिष्यन्ति तस्मात्त्वां चोदयाम्यहम् ॥ २३ , -- शान्तिपर्व, प्रध्याय ४६ भीष्म को महाभारत में योगेश्वर कृष्ण ने ज्ञान का पूर्णचन्द्र अथवा दिनमरिण बताया है, उसी प्रकार आज के युग में ये महासन्त पंन्यासप्रवर कल्याण विजय जी विविध विषयों के पारद्रष्टा ज्ञानसूर्य हैं । जैन विद्वान् ही

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