Book Title: Tirthankar Parshwanath Author(s): Ashokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain Publisher: Prachya Shraman BhartiPage 12
________________ तीर्थंकर पार्श्वनाथ ग्वालियर जिले के मोहिना ग्राम में हुआ। आपने अग्रहन वदी पंचमी वि. स. 2000 को कोटा रा.ज. में आचार्य विजय सागर जी से मुनि दीक्षा ली। आप प्रतिभाशाली आचार्य थे। आपके सदुपदेश से अनेकों जिनालयों का निर्माण और जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा हुई। आपके सानिध्य में अनेक पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें व गजस्थ महोत्सव सम्पन्न हुए। भिण्ड नगर को आपकी विशेष देन है। आपका जन्म मोहना (म.प्र.) में तथा पालन-पोषण पीरोठ में हुआ अतः आप 'पीरोठ वाले महाराज' साथ ही भिण्ड नगर में अनेक जिनबिम्बों की स्थापना कराने के कारण 'भिण्ड वाले महाराज' के नाम से विख्यात रहे हैं। आ. विजयसागर जी ने अपना आचार्यपद विमलसागर जी महाराज (भिण्ड) को दिया। ____ आचार्य विमलसागर जी ने अनेक दीक्षायें दी उनके शिष्यों में आचार्य सुमतिसागरजी, आचार्य निर्मलसागर जी, आचार्य कुन्थुसागर जी, मुनि ज्ञानसागर जी आदि अतिप्रसिद्ध हैं। आचार्य विमलसागर जी महाराज ने अपना आचार्य पद ब्र. ईश्वरलाल जी के हाथ पत्र द्वारा सुमतिसागर जी को दिया था। आपने वि.स. 2030 में समाधिमरण कर शरीर को त्याग दिया। - आचार्य सुमतिसागर जी कठोर तपस्वी और आर्षमार्गानुयायी थे। आपका जन्म असौज सुदी चोंथ वि.स. 1974 को श्यामपुरा. (मुरैना) में जैसवाल जाति के श्री नथ्थीलाल जैन के घर हुआ था। आपने अनेक कष्टों और आपदाओं को सहने के बाद दिगम्बरी दीक्षा अग्रहन बदी द्वादसी वि.स. 2025 में धारण की थी। आपके जीवन में अनेक उपसर्ग और चमत्कार हुए थे। पं मक्खनलाल जी मुरैना जैसे उद्भट विद्वानों का संसर्ग आपको मिला। आप मासोपवासी कहे जाते थे। आपके उपदेश से अनेक आर्गमार्गानुयायी ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ। सोनागिर स्थित त्यागी व्रती आश्रम आपकी कीर्तिपताका फहरा रहा है। आपने शताधिक दीक्षायें अब तक प्रदान की थी। आपके प्रसिद्ध शिष्यों में उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज प्रमुख हैं। ऐसे आचार्यों, उपाध्यायों, मुनिवरों, गुरुवरों को शत-शत नमन, शत-शत वन्दन।Page Navigation
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