Book Title: Tirthankar 1978 11 12
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

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Page 266
________________ कर देश की शिक्षण संस्थाओं में सत्साहित्य पहुँचाने के अपने दावे और दायित्व को पूरा करेंगी? तब, सच यह एक बड़ा काम होगा और प्रौढ़ शिक्षा को आकार . देने का कोई आरम्भ-बिन्दु बन पायेगा। काव्य की कसौटी पर 'कालजयी' की उत्कृष्टता को नकारना भी मुश्किल है; अत: बधाई कवि को, बधाई प्रकाशक को। मल्हार (काव्य) : राजकुमारी बेगानी : प्रमीला जैन; २१४ चित्तरंजन एवेन्यू, कलकत्ता-७०० ००७ : मूल्य-उल्लेख नहीं : पृष्ठ ४० : डिमाई १/८, १९७८ । ____ श्रीमती बेगानी जैन जगत् की एक सुपरिचित विदुषी-प्रबुद्ध लेखिका हैं। वे एक कुशल संपादिका होने के साथ ही प्रखर ममीक्षक भी हैं। कलकत्ते से प्रतिमास प्रकाशित 'तित्थयर' की वे सहसंपादिका हैं। जहाँ तक बांग्ला से हिन्दी में अनवाद का प्रश्न है, 'तीर्थकर' के पाठक उनसे अपरिचित नहीं हैं; किन्तु आलोच्य कृति उनकी व्यथास्नाता १६ लोकमांगलिक कविताओं का संकलन है, लोकमांगलिक इसलिए कि व्यथा की चरम आकृति मंगल के अलावा अन्य कुछ होती नहीं है, और वही इन कविताओं में है। यद्यपि 'मल्हार' में आत्माभिव्यंजन अधिक प्रखर और मर्मस्पर्शी है, तथा व्यथा को सौन्दर्य की अंगुली थमाकर उसे लावण्य की डगर चलाना कठिन ही होता है तथापि वह इस लघुपुस्तिका में हुआ है और पूरी शक्ति से संपन्न हुआ है। "मैंने दुख को ही सुख माना है जीवन के पतझड़ को ही नव वसन्त जाना है" जैसी अनेक पंक्तियाँ जो मन को मथ डालती हैं, और भीतर के संगीत को उद्बुद्ध करती हैं, 'मल्हार' में हैं। इन रागात्मक संवेदनाओं की पीठ पर जो व्यथावेदना है, उसका मिलान हम महादेवीजी के गीतों और मीरा के पदों से कर सकते हैं। वस्तुतः बंगाल ने हिन्दी को बहुत दिया है, आज भी दे रहा है; 'मल्हार' में वही सातत्य स्पन्दित है। हमें कवयित्री से अभी काफी आशा-अपेक्षा है। मुद्रण प्रांजल, आवरण कलात्मक, और संयोजन वैदग्ध्यपूर्ण है। -नेमीचन्द जैन जयवर्धमान (नाटक) : डॉ. रामकुमार वर्मा, भारतीय साहित्य प्रकाशन, मेरठ; मूल्य-दस रुपये, पृष्ठ-११६, काउन-१९७४ ।। महावीर के २५०० वें निर्वाण-वर्ष के आसपास उनसे सम्बन्धित जो प्रचुर साहित्य प्रकाशित हुआ है उसमें ऐसे साहित्य की मात्रा बहुत कम है जिसे ललित साहित्य कहते हैं । इस कमी की पूर्ति जिन रचनाओं से होती है उनमें 'जयवर्धमान' नाटक अग्रगण्य है। हिन्दी में महावीर पर लिखा गया वह कदाचित् अकेला नाटक है। महावीर का जीवन नाटकीयता से रहित है। एक शान्त-गहरी नदी का जीवन है उनका; घटना-रहित । न बाढ़, न सुखा; इसीलिए हिन्दी कथात्मक सृजन को उनमें कोई सामग्री नहीं दिखायी देती। अनूप शर्मा का 'वर्धमान' महाकाव्य, स्व. हरिप्रसाद हरि का अधूरा छूटा महावीर महाकाव्य, वीरेन्द्रकुमार जैन का अनुत्तरयोगी' उपन्यास और रामकुमार वर्मा का 'जयवर्धमान' नाटक-बस ये गिने-चुने कथात्मक प्रयत्न हैं; लेकिन नदी का बहना --भीतर-भीतर दूर तक धरती का गीला और उर्वर होते जाना अपने तीर्थकर : अप्रैल ७९/४२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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