Book Title: Tirthankar
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Tin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur

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Page 2
________________ 'तीर्थकर' पर अभिमत 'जैन महिलादर्श पौराणिक ज्ञान के लिए यह रचना अनूठी, सुन्दर हुई है। तीर्थंकरों के पूर्ण पुराण को बाँचकर जो कुछ ज्ञान होता है, उससे अधिक ज्ञान इस पुस्तक के बाँचने से प्राप्त हो सकता है । दिवाकरजी सुप्रसिद्ध लेखक हैं। आपकी रचनाएँ चारों अनुयोगों में जब भी प्रकाशित होती रहती हैं, उत्तम होती हैं । प्रशममूति, क्षुल्लक गणेशप्रसाद जी वर्णी आपकी तीर्थंकर पुस्तक अनुपम है । एकत्र सर्वसामग्री का संयोग किया है । जैनधर्म की प्राचीनता इससे पूर्ण झलकती है । इतिहास के गवेषियों को संक्षेप में अति गम्भीर शिक्षा देने वाली है । इसमें तीर्थंकरों की सर्वोदय सामग्री सन्निहित है । इसके लेखक महाविद्वान् हैं । उन्होंने बहुत ही अनुभवपूर्ण लेखनी से इसे लिखा है । मैंने इसे सुना, सुनकर अपूर्व आल्हाद हुआ। आज ऐसे ही ग्रन्थों की लोक में आवश्यकता है । उसकी पूर्ति इस पुस्तक से हो गई है। विद्वदरत्न पं० माणिकचन्द्र जी न्यायाचार्य तीर्थंकर पुस्तक बड़े परिश्रम से लिखी है । आपकी चढ़ी हुई प्रतिभापूर्ण विद्वत्ता का मूर्तिमान प्रतिबिम्ब इस पुस्तक में निबद्ध है । अनेक ग्रन्थियों को सुलझाया गया है । पौराणिक प्रमेयों को युक्तिउदाहरणों द्वारा दार्शनिकों के गले उतार दिया दानवीर सर सेठ भागचन्दजी सोनी, अजमेर तीर्थंकर पुस्तक बड़े रोचक ढंग से लिखी गई है । बड़ी सरल एवं सरस भाषा में विषयों को समझाया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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