Book Title: Tharapadragaccha ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf

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Page 5
________________ Vol. 1-1995 Jain Education International सर्वदेवसूरि विजयसिंहसूर | विजयसिंहसूरि I शांतिसूर विजयसिंह सूरि (वि० सं० १३१५ / ई० स० १२५९ ) प्रतिमालेख ' सर्वदेवसूरि ( वि० सं० १४५० / ई० स० १३९४) प्रतिमालेख ( प्रतिमालेख अनुपलब्ध) ( वि० सं० १४७९-१४८३ / ई० स० १४२३-१४२७) प्रतिमालेख ( प्रतिमालेख अनुपलब्ध) (सर्वदेवसूरि) [ विजयसिंहसूरि शांतिसूर धारापद्रगच्छ का संक्षिप्त... रामसेन के वि० सं० १०८४ / ई० स० १०२८ के परिकरलेख में थारापद्रगच्छ के आचार्यों की जो गुरु-परम्परा मिलती है, उसमें सिद्धान्तमहोदधि सर्वदेवसूरि का भी नाम मिलता है। समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर इन्हें बादिवेताल शान्तिसूरि के प्रगुरु सर्वदेवसूरि से अभिन्न माना जा सकता है । इस प्रकार थारापद्रगच्छ के मुनिजनों के गुरु परम्परा की एक नवीन तालिका बनती है, जो इस प्रकार है : वटेश्वरसूरि ज्येष्ठाचार्य 1 शांतिभद्रसूरि ! सिद्धान्तमहोदधि- सर्वदेवसूरि (वि० सं० १२८८ / ई० स० १२३२) प्रतिमा लेख. ( महामात्य वस्तुपाल द्वारा वि० सं० १२९८ / ई० स० १२४२ में शत्रुञ्जयमहातीर्थ पर उत्कीर्ण कराये गये शिलालेख में उल्लिखित थारापद्रगच्छीय सर्वदेवसूरि संभवतः यही सर्वदेवसूरि हो सकते हैं) (वि० सं० १५०१-१५१६ / ई० स० १४४५ - १४६०) प्रतिमालेख (वि० सं० १५२७-१५३२ / ई० स० १४७१-१४७६ ) प्रतिमालेख [ प्रथम ] शालिभद्रसूरि [ प्रथम ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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