Book Title: Tharapadragaccha ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf
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१२५१
१२५९
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१२५९ ज्येष्ठ सुदि ३
१२९४ वैशाख सुदि ८ शुक्रवार
शिवप्रसाद
ज्येष्ठ सुदि पार्श्वनाथ की प्रतिमा
१५
का लेख
१३३४ माघ सुदि १० रविवार
शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख
चिन्तामणि जिनालय, चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर
जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
पार्श्वनाथ जिनालय, माणकचौक खंभात
शांतिनाथ जिनालय, जैन धातुप्रतिमा लेख संग्रह, भाग कटाकोटडी, खंभात २, सं० मुनि बुद्धिसागर, लेखाङ्क ६०९
चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर
Nirgrantha
बीकानेर जैन लेख संग्रह, सं० अगरचंद नाहटा, लेखाइ १०३
बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग २ लेखाइ २८
नाहटा, पूर्वोक्त, लेखा १३३
सुविधिनाथ की जैन मंदिर, शंखेश्वर जिनविजय, पूर्वोक्त, लेखा ४९८ प्रतिमा का लेख
२. शिलालेख
महामात्य वस्तुपाल द्वारा शत्रुञ्जय महातीर्थ पर उत्कीर्ण कराये गये शिलालेख की प्राचीन नकल में (जिसका पूर्व में उल्लेख आ चुका है) अन्य गच्छों के आचार्यों के साथ साथ धारापद्रगच्छ के आचार्य सर्वदेवसूरि और पूर्णभद्रसूरि का भी उल्लेख है।
लेख के मूलपाठ के लिये द्रष्टव्य UP Shah "A Forgotten Chapter In The History of Svetambara Jaina Church" JASB Vol. 30, Part 1, 1955, pp. 100-113.
वि० [सं०] १३३३ का शिलालेख, जिसमें चाहमान नरेश चाचिगदेव के राज्य में स्थित महावीर जिनालय को धारापद्गच्छ
के आचार्य पूर्णभद्रसूरि के उपदेश से दान देने का उल्लेख है।
द्रष्टव्य- प्राचीन जैन लेखसंग्रह, भाग २, सं० मुनि जिनविजय, लेखाङ्क ४०२.
घोषाकी जैन प्रतिमा निधि की दो जिन प्रतिमायें इस गच्छ से सम्बन्ध हैं। इन पर वि० सं० १२५९ और वि० सं० १५१४ के लेख उत्कीर्ण हैं, किन्तु इनके मूलपाठ हमें प्राप्त नहीं हो सके हैं, अतः इनके सम्बन्ध में विशेष विवरण दे पाना कठिन है।
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संदर्भ- मधुसूदन ढांकी और हरिशंकर शास्त्री, "घोघानो जैन प्रतिमा निधि", फार्बस गुजराती सभा त्रैमासिक, जनवरी मार्च अंक, ई० स० १९६५.
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