Book Title: Tharapadragaccha ka Sankshipta Itihas Author(s): Shivprasad Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf View full book textPage 3
________________ धारापद्रगच्छ का संक्षिप्त... १- षडावश्यक सूत्रवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० ११२२ / ई० स० १०६५ ) २- काव्यालंकारटिप्पन' (रचनाकाल वि० सं० ११२५ / ई० स० १०६८) Vol. I-1995 उक्त रचनाओं की प्रशस्तियों में ग्रन्थकार ने स्वयं को थारापद्रगच्छीय शालिभद्रसूरि का शिष्य बतलाया है। शालिभद्रसूरि I नमिसाधु (षडावश्यकसूत्रवृत्ति एवं काव्यालंकार - टिप्पन के प्रणेता) इसी गच्छ के शालिभद्रसूरि अभिधानधारक एक और आचार्य ने वि० सं० ११३९ / ई० स० १०८३ में सटीक बृहत्संग्रहणीप्रकरण' की रचना की। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुर्वावली इस प्रकार दी है - शीलभद्रसूरि I पूर्णभद्रसूरि 1 शालिभद्रसूरि (वि० सं० ११३९ / ई० स० १०८३ में सटीक बृहत्संग्रहणीप्रकरण के रचनाकार) I रामसेन के ऊपरकथित लेख में उल्लिखित पूर्णभद्रसूरि तथा सटीकबृहत्संग्रहणीप्रकरण के कर्ता शालिभद्रसूरि के गुरु पूर्णभद्रसूरि सम्भवतः एक ही व्यक्ति हैं । रामसेन के उपर्युक्त लेख की मिति वि० सं० १११० तथा बृ० सं० प्र० की रचनामिति वि० सं० ११३९ के बीच २८ वर्षों का ही अन्तर है। इससे भी यह संभावना बलवत्तर होती है। ठीक इसी तरह वि० सं० ११२२ और वि० सं० ११२५ में क्रमशः षडावश्यकसूत्रवृत्ति और काव्यालंकारटिप्पन रचने वाले नमिसाधु के गुरु शालिभद्रसूरि भी उपर्युक्त बृ० सं० प्र० के कर्ता शालिभद्रसूरि से अभिन्न जान पड़ते हैं। ११ इसी गच्छ में वादिवेताल शांतिसूरि नामक एक प्रभावक एवं विद्वान् आचार्य हुए हैं। इनकी पांच कृतियां उपलब्ध हुई हैं, यथा : १- उत्तराध्ययनसूत्र पर लिखी गयी पाइयटीका अपरनाम शिष्यहिताटीका २- जीवविचारप्रकरण ३- चैत्यवन्दनमहाभाष्य ४- बृहद्शान्तिस्तव ५- जिनस्नात्रविधि Jain Education International इनमें पाइयटीका और बृहदशान्तिस्तव अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। पाइयटीका की प्रशस्ति में टीकाकार ने थारापद्रगच्छ को चन्द्रकुल से समुद्भूत माना है, किन्तु रचना की तिथि एवं अपनी गुरु-परम्परा के बारे में वे मौन रहे हैं। अपनी अन्य कृतियों की प्रशस्तियों में भी शांतिसूरि ने अपनी गुरु- परम्परा एवं रचनाकाल का कोई उल्लेख नहीं किया है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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