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तत्त्वार्थवार्तिक विषय-सूची
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प्रथम अध्याय
मंगलाचरण
सूत्रकारने मार्गका ही क्यों उपदेश दिया ? १
मोक्षका अस्तित्व निरूपण
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बन्धका कारण बतलाकर ही मोक्षका
कारण बतलाना इष्ट है मोक्षमार्गका स्वरूप
सम्यग्दर्शन का स्वरूप
सम्यक्चारित्रका स्वरूप सम्यग्ज्ञान आदि शब्दों की व्युत्पत्ति श्रात्मा और ज्ञान श्रादिका एकान्ततः भेदाभेद पक्षका खण्डन श्रौर कथंचिद्भेदाभेद पक्षका स्थापन समवायसम्बन्धका निषेध पर्याय और पर्यायी में कथंचिद्भेदाभेद का निरूपण
सूत्रस्थ ज्ञानादि पदों का पौर्वापर्य विचार मोक्ष स्वरूपका वर्णन मार्गशब्दकी व्युत्पत्ति
सांख्य, वैशेषिक, न्याय तथा बौद्धमतसम्मत मोक्षकारणका खण्डन करके जैन मतानुसार सम्यग्दर्शनादिकी मोक्ष- कारणताका निरूपण
ज्ञानसे ही मुक्ति होती है इस मतका
खण्डन
ज्ञान और दर्शनकी युगपत् प्रवृत्ति होनेसे उनके एकत्वका परिहार
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२६५ | सम्यग्दर्शनादिमें लक्षणभेदसे वे मिलकर एक मार्ग नहीं हो सकते इस शंकाका समाधान
सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान तथा सम्यज्ञान और सम्यक्चारित्रमें श्रविनाभावका निरूपण
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ज्ञान और चारित्र में कालभेद न होनेसे उनमें अभेद है इस मतका परिहार
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'तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्' इस सूत्र मैं 'तत्त्व' और 'अर्थ' पदके ग्रहणकी सार्थकता
श्रद्धानका अर्थ इच्छा माननेपर दोषापत्ति
२७१ | सम्यग्दर्शनके निसर्गज और श्रधिगमज ये दो भेद माननेपर श्रानेवाले दोष का परिहार
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सूत्र में श्राये हुए 'तत्' शब्दकी सार्थ
कता
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सम्यग्दर्शनका लक्षण
सम्यक् शब्दकी निरुक्ति और उसका अर्थ १६ दर्शन शब्द के अर्थका विचार तत्त्व शब्द के अर्थका निरूपण
तत्त्वार्थ और श्रद्धान शब्दकी निरुक्ति अर्थनिरूपण
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सम्यग्दर्शनके भेद और उनका लक्षण सम्यग्दर्शनकी उत्पत्तिके प्रकार निसर्ग और अधिगम शब्दकी निरुक्ति २२
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