Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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भाषा टीका - द्रव्यार्थ की अपेक्षा आहारक शरीर सबसे कम होते हैं । द्रव्यार्थ अपेक्षा वैक्रियिक शरीर उससे असंख्यात गुणे होते हैं । द्रव्यार्थ की अपेक्षा श्रदारिक शरीर वैक्रियिक से भी असंख्यात गुणे होते हैं । तैजस और कर्माण दोनों ही शरीर द्रव्यार्थ की अपेक्षा बराबर होते हुए प्रदारिक शरीर से भी अनन्त गुणे होते हैं ।
द्वितीयाध्याय :
प्रदेशों की अपेक्षा आहारक शरीर सबसे कम होते हैं। वैक्रियिक शरीर प्रदेशों की अपेक्षा आहारक से असंख्यात गुणे होते हैं। उनसे श्रदारिक शरीर प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यात गुणे होते हैं उनसे प्रदेशों के अर्थ की अपेक्षा तैजस शरीर अनन्त गुणे होते हैं । प्रदेशों के अर्थ की अपेक्षा कार्मण शरीर भी उनसे अनन्त गुणे होते हैं ।
संगति – यहां सूत्र और आगम वाक्य में शाब्दिक अंतर ही है।
पहियई ।
अप्रतिहतगतिः ।
प्रतीघाते ।
राजप्रश्नीसूत्र, सूत्र ६६.
२, ४०.
छाया
भाषा टीका - ( इनमें से अन्त के दो तैजस और कार्मण शरीर ) की गति किसी बस्तु से नहीं रुकती ।
अनादिसम्बन्धे च ।
सर्वस्य ।
२, ४१.
२, ४२.
तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भन्ते ! कालओ कालचिरं होइ ? गोयमा ! दुविहे पण, तं जहा - अणाइए वा अपज्जवसिए अाइ वा सपज्जवसिए ।
व्याख्याप्रज्ञप्ति सप्तक ८ ० १ सू० ३५०.