Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari

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Page 287
________________ परिशिष्ट नं. २ [ २६९ २९-क्षेत्रवास्तु, हिरण्यसुवर्ण, धनधान्य, दासीदास और कुष्य इन पांचों के परिमाण को उल्लंघन करना परिग्रह परिमाणवत के पांच प्रतीचार है। ३०- ऊर्ध्वातिक्रम, अधोऽतिक्रम, तिर्यगतिक्रम, क्षेत्रवृध्दि और स्मृत्यंतराधान यह पांच दिवत के अतिचार हैं। ३१-पानयन, प्रेष्यप्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात और पुद्गलक्षेप यह पांच देशव्रत के अतिचार हैं। ३२-कन्दर्प, कौत्कुच्य, मौखर्य, असमीक्ष्याधिकरण, और उपभोगपरिभोगानर्थक्य यह पांच अनर्थदंडवत के अतिचार हैं। ३३–तीन प्रकार के योग दुःमणिधान, अनादर और स्मृत्यनुपस्थान यह पांच सामायिकवत के अतिचार हैं। ३४- अप्रत्यवेक्षित अप्रमार्जितोत्सर्ग, अप्रत्यवेक्षित अप्रमार्जितादान, अप्रत्यवेक्षित ____ अप्रमार्जित संस्तरोपक्रमण, अनादर और स्मृत्यनुपस्थान यह पांच प्रोषधोप वास व्रत के अतिचार हैं। ३५–सचित्त, सचित्त सम्बन्ध, सचित्तसम्मिश्र, अभिषव और दुःपक्क ऐसे पांच प्रकार के पदार्थों का आहार करना उपभोग परिभोग परिमाणव्रत के पांच अतिचार हैं। ३६–सचित्तनिक्षेप, सचित्तपिधान, परव्यपदेश, मात्सर्य और कालातिक्रम यह पांच अतिथि संविभाग व्रत के अतिचार हैं। ३७–जीविताशंसा, मरणाशंसा, मित्रानुराग, सुखानुबंध और निदान यह पांच सल्लेखनामरण के अतिचार है। दान का वर्णनां३८- [अपने और पराये] उपकार के लिये अपने [पदार्थ ] का त्याग करना दान है। समणोवासए णं भंते! तहारूवं समणं वा जाव पाडलाभेमाण किं चयति ? गोयमा! जोवियं चयति दुच्चयं चयति

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