Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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वाले स्कन्ध तक सब अनन्त होते हैं। संख्यात प्रदेश वाले स्कन्ध अनन्त होते हैं, श्रसंख्यात प्रदेश वाले स्कन्ध भी अनन्त होते हैं और अनन्त प्रदेश वाले स्कन्ध भी अनन्त होते हैं ।
पचमोऽध्याय:
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संगति - सूत्र में पुद्गलों के चार भेद दिये हुए हैं । परमाणु संख्यात प्रदेश वाले पुद्गल ( स्कन्ध), असंख्यात प्रदेश वाले पुद्गल ( स्कन्ध ) और ' व ' पद से अनन्त प्रदेश वाले पुद्गल ( स्कन्ध) | आगम वाक्य में यह भेद दिखलाने के अतिरिक्त स्कन्धों की संख्या भी दे दी है। परमाणु के एक प्रदेश होने के कारण से प्रदेश नहीं माने गये हैं । यह सभी आगम वाक्य सूत्रों के साथ बिलकुल मिलते जुलते हैं ।
छाया
लोकाकाशेऽवगाहः ।
धम्मो अधम्मो आगासं कालो पुग्गजंतवो । एस लोत्ति पण्णत्तो जिणेंहिं वरदं सहिं ||
५, १२.
छाया
धर्मोऽधर्मः आकाशः कालः पुद्गलजन्तवः । एषः लोक इति प्रज्ञप्तः जिनैर्वरदर्शिभिः ॥
भाषा टीका – जिसके अन्दर धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव रहते हों उसको सर्वदर्शी जिनेन्द्र भगवान् ने लोक कहा है। अर्थात् लोकाकाश में सब द्रव्य रहते हैं ।
उत्तराध्ययन अध्य० २८ गाथा ७
धर्माधर्मयोः कृत्स्ने ।
५, १३.
धम्माधम्मे य दो चेव, लोगमित्ता वियाहिया । लोगालोगे य आगासे, समए समयखेत्तिए ||
उत्तराध्ययन अध्ययन ३६ गाथा ७.
धर्माधर्मौ च द्वौ चैव, लोकमात्रौ व्याख्यातौ । लोकेऽलोके चाकाशं, समयः समयक्षेत्रिकः ॥