Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 20
________________ गंगा सिन्धु आदि नदियाँ चौदह चौदह हजार नदियों के परिवार सहित हैं। भरत: षड्विंशतिपंचयोजनशतविस्तार: पट् चैकोनविंशतिभागा योजनस्य ।।२४।। भरतक्षेत्र का विस्तार ५२६/९ योजन है। तद्विगुणद्विगुण विस्तारा वर्षधरवर्षाविदेहान्ताः।।२५।। विदेह क्षेत्र तक के पर्वत और क्षेत्र इस भरत क्षेत्र से दगुणे-दगुणे बिस्तार वाले हैं अर्थात् क्षेत्र से दूना पर्वत, पर्वत से दूना क्षेत्र है। उत्तरादक्षिणतुल्या:।।२६।। विदेह क्षेत्र से उत्तर के तीन पर्वत और तीन क्षेत्र, दक्षिण पर्वतों और क्षेत्रों के समान विस्तार वाले हैं। भरतैरावतयोवृद्धिहासौषट्समयाभ्यामुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्याम्।।२७।। उपसर्पिणी और अवसर्पिणी रूप छ: कालों से भरत और ऐरावत क्षेत्रों के मनुष्यों की आयु, काय, भोगोपभोग आदि का वृद्धि और ह्रास होता है। ताभ्यामपराभूमयोऽवस्थिताः।।२८।। भरत और ऐरावत क्षेत्र को छोड़कर बाकी की पाँच भूमियाँ ज्यों की त्यों नित्य हैं। वहाँ के भोग भूमियाँ जीव व कर्मभूमियाँ जीवों की आयु आदि काम का वृद्धि हास नहीं होता है। एकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवतकहारिवर्षकदेवकुरवकाः।।२९।।

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