Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 56
________________ अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यान रसपरित्याग विविक्तशय्यासनकायक्लेशा बाह्य तपः।।१९।। १ अनशन, २ अवमौदर्य भूख से कम खाना, वृत्तिपरिसंख्यान भोज्य पदार्थों की गिनती रखना, ४ रसपरित्याग रसों का त्याग, ५ विविक्त शय्यासन एकान्त में शयन और आसन, ६ कायक्लेश ये ६ प्रकार के बाह्य तप हैं। प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यस्वाध्यायव्युत्सग ध्यानान्युत्तरम।।२०।। १ प्राचश्चित्त, २ विनय, ३ वैयावृत्य, ४ स्वाध्याय, ५ व्युत्सर्ग, ६ ध्यान ये ६ अभ्यंतर तप हैं। नवचतुर्दशपञ्चाद्विभेदायथाक्रमप्रारध्यानात्।।२१ ।। ध्यान से पहिले पाँच तपों के क्रम से नौ, चार, दस, पाँच और दो भेद होते हैं।। आलोचना प्रतिक्रमण तदुभय विवेक व्युत्सर्ग तपश्छेद परिहारोपस्थापना:।।२२।। आलोचना, २ प्रतिक्रमण (मैंने जो अपराध किये हैं वे मिथ्या हों), ३ आलोचना प्रतिक्रमण, ४ विवेक अहारादिक का त्याग, ५ व्युत्सर्ग (कायोत्सर्ग), ६ तप, ७ छेद (दोष लगने पर पहले का चारित्र छेद देना), ८ परिहार (संघ से बाहर करना), ९ उपस्थापना (फिर से दीक्षा देना) ये नव भेद प्रायश्चित के हैं। ज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः।।२३।। १ ज्ञान, २ दर्शन, ३ चारित्र, ४ उपचार इस तरह विनय के चार भेद हैं। आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्षग्लानगणकुलसंघ साधुमनोज्ञानाम्।।२४॥

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