Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 49
________________ मतिश्रुतावधिमन:पर्ययकेवलानाम् ।।६।। (१) मतिज्ञानावरण (२) श्रुतज्ञानावरण (३) अवधिज्ञानावरण (४) मनः पर्यय ज्ञानावरण (५) केवलज्ञानावरण ऐसे पाँच भेद ज्ञानावरण प्रकृति के हैं । चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानां निद्रा निद्रानिद्रा प्रचला प्रचलाप्रचला स्त्यानगृद्धयश्च ॥ ७ ॥ (१) चक्षुदर्शनावरण (२) अचक्षुदर्शनावरण (३) अवधिदर्शनावरण (४) केवलदर्शनावरण (५) निद्रा (६) निद्रानिद्रा (७) प्रचला (८) प्रचला प्रचला और ( ९ ) स्त्यानगृद्धियेनौ भेद दर्शनावरण के हैं। सदसद्वेद्ये॥८॥ वेदनीय कर्म के सातावेदनीय और असातावेदनीय ये दो भेद हैं। दर्शनचारित्रमोहनीयाकषायकषायवेदनीयाख्या– स्त्रिद्विनवषोडश भेदाः सम्क्यत्व मिथ्यात्व तदुभयान्यकषाय कषायौ हास्य रत्यरतिशोकभयजुगुप्सास्त्रीपुं— नपुंसक वेदाअनंतानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यान– संज्वलन विकल्पाश्च कैश : क्रोधमानमायालोभाः ।। ९ ।। मोहनीय के दर्शन मोहनीय और चारित्रमोहनीय ये दो भेद होते हैं इनमें से दर्शनमोहनीय के सम्यक्तव, मिथ्यात्व और सम्यक्मथ्यात्व ये तीन भेद हैं। चारित्र मोहनीय के अकषायवेदनीय और कषाय वेदनीय ये दो भेद हैं इनमें से पहिला तो हास्य, रति, अरति, शोक, भय जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसक वेद ऐसे नौ प्रकार का है। कषायवेदनीय अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन के भेदों

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