Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 40
________________ इससे विपरीत अर्थात् अपनी निंदा, पर की प्रशंसा, अपने गुण ढकना और दूसरों के गुण प्रकाशित करना, नम्रवृत्ति और निरभिमान ये उच्च गोत्र कर्म के आश्रव के कारण हैं। विघ्नकरणमन्तरायस्य।।२७।। पर के दान भोगादि में विघ्न करना अन्तराय कर्म के आश्रव का कारण है। इति तत्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे षष्ठोऽध्यायः। अध्याय ७

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