Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 23
________________ इन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिंशपारिषदात्मरक्षलोकपालानीकप्रकीर्णकाभियोग्यकिल्विषिकाश्चैकशः।।४।। इन चारों प्रकार के देवों में प्रत्येक के इन्द्र सामानिक (आयु आदि में इन्द्र के समान किन्तु इन्द्र पद रहित) त्रायस्त्रिंश (मंत्री अथवा पुराहित तुल्य), परिषद (मित्र तुल्य), आत्मरक्ष लोकपाल अनीक (सेना तुल्य), प्रकीर्णक (नगर निवासी तुल्य), आभियोग्य (दास तुल्य) किल्विषिक (अंत्यज समान) दश दश भेद होते हैं। त्रायस्त्रिंशलोकपालवा व्यन्तरज्योतिष्का:।।५।। व्यन्तर और ज्योतिष्क देवों में त्रायत्रिंश और लोकपाल ये दो भेद नहीं होते हैं। पूर्वयोर्दीन्द्राः।।६।। पहिले के दो निकायो में दो दो इन्द्र होते हैं। कायप्रवीचारा आ ऐसानात्।।७।। ऐशान स्वर्ग तक के देव मनुष्यों के समान शरीर से काम सेवन करनेवाले होते हैं। शेषाः स्पर्शरूपशब्दमन: प्रवीचारा:।।८।। ऊपर के स्वर्गो के देव क्रमश: स्पर्श करने से रूप देखने से, शब्द सुनने से और विचार मात्र करने से प्रवीचार (काम सेवन) करने वाले हैं। अर्थात् इतने मात्र से वासना पूर्ति हो जाती है। परेऽप्रवीचारा:।।९।। सोलह स्वर्गों से आगे के नव ग्रैवेयक आदि विमानों में रहने वाले देव काम सेवन रहित हैं। भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाग्नि

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