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करना, संथारादि बिछाना व्रत का अनादर करना और भूल जाना ये पाँच प्रोषधोपवास व्रत के अतीचार हैं।
सचित्तसम्बद्धसंमिश्राभिषवदुष्पक्वाहारा:।।३५।। सचित्त पदार्थों से सम्बन्ध वाला, सचित्त वस्तु से मिला हुआ, अभिषव (पौष्टिक व मादक द्रव्य का आहार) और कच्चा पक्का आहार करना ये पाँच उपभोग परिभोग परिमाण व्रत के अतीचार हैं।
सचित्तनिक्षेपापिधानपरव्यपदेश
मात्सयकालातिक्रमा:।।३६।। प्राशुक आहारादि, सचित्त वस्तु पर रखना, सचित्त वस्तु से ढकना, अन्य की वस्तु का दान देना, ईर्षा करके दान देना, काल का उल्लंघन करके अकाल में भोजन देना ये पाँच अतिथि संविभाग व्रत के अतीचार हैं।
जीवितमरणाशंसामित्रानुराग
सुखानुबंधनिदानानि।।३७।। जीने की इच्छा करना, मरने की इच्छा करना, मित्रों से प्रेम करना, पूर्वकाल में भोगे हुए सुखों को याद करना, अगले जन्म के लिए विषयादि की वाञ्छा करना ये पाँच समाधिमरण के अतीचार हैं।
अनुग्रहार्थ स्वस्यातिसर्गो दानम्।।३८।। उपकार के लिए अपनी वस्तु का त्याग करना सो दान है।
विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात्तद्विशषेः।।३९।। विधि, द्रव्य, दाता और पात्र की विशेषता से उस दान में भी विशेषता होती है।