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२३८ : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्यं स्मृति-ग्रन्थ
होगा जैसा कि हमें प्रायः भारतीय परम्पराओं में मिलता है। आज हमें जिस रूपमें मिलता है उसे उसी रूपमें माननेमें क्या आपत्ति है ? भूगोलका रूप सदा शाश्वत तो रहता नहीं । जैन परम्परा इस ग्रन्थके तीसरे और चौथे अध्याय के पढ़नेसे ज्ञात हो सकती है । बौद्ध और वैदिक परम्पराके भूगोल और खगोलका वर्णन इस प्रकार है
बौद्ध परम्परा अभिधर्मकोशके आधार से
असंख्यात वायुमण्डल हैं जो कि नीचेके भागमें सोलह लाख योजन गम्भीर है । जयमण्डल ११२०००० योजन गहरा है । जयमण्डलमें ऊपर ८००००० योजन भागको छोड़कर नीचे का भाग ३२०००० योजन भाग सुवर्णमय है । जलमण्डल और काञ्चनमण्डलका व्यास १२०२३४० योजन है और परिधि ३६४०३५० योजन है ।
वितनक और निमिन्धर ये
काञ्चनमण्डलमें मेरु, युगन्धर, ईषाधर, खदिरक्, सुदर्शन, अश्वकर्ण, ८ पर्वत हैं । ये पर्वत एक दूसरेको घेरे हुए हैं । निमिन्वर पर्वतको घेरकर जम्बूद्वीप, पूर्वविदेह, अवरगोदानी और उत्तरकुरु ये चार द्वीप हैं । सबसे बाहर चक्रवाल पर्वत हैं । सात पर्वत सुवर्णमय हैं । चक्रवाल लोहमय है । मेरुके ४ रंग हैं । उत्तरमें सुवर्णमय, पूर्व में रजतमय, दक्षिणमें नीलमणिमय और पश्चिममें वैदूर्यमय है । मेरु पर्वत ८०००० योजन जलके नीचे है और इतना ही जलके ऊपर है । मेरु पर्वतकी ऊँचाईसे अन्य पर्वतों की ऊँचाई क्रमशः आधी-आधी होती गई है। इस प्रकार चक्रवाल पर्वतकी ऊँचाई ३१२ ।। योजन है । सब पर्वतों का आधा भाग जलके ऊपर है । इन पर्वतोंके बीच में सात सीता ( समुद्र ) हैं । प्रथम समुद्रका विस्तार ८०००० योजन है। अन्य समुद्रोंका विस्तार क्रमशः आधा-आधा होता गया है । अन्तिम समुद्रका विस्तार ३२०००० योजन है ।
मेरु दक्षिण भाग में जम्बूद्वीप शकटके समान अवस्थित है । मेरुके पूर्व भागमें पूर्वविदेह अर्धचन्द्राकार है । मेरुके पश्चिम भागमें अवरगोदानीय मण्डलाकार है । इसको परिधि ७५०० योजन है । और व्यास २५०० योजन है । मेरुके उत्तरभागमें उत्तर कुरुद्वीप चतुष्कोण है । इसकी सीमाका मान ८००० योजन है । चारों द्वीपों के मध्य में आठ अन्तर द्वीप हैं । उनके नाम ये हैं-देह, विदेह, पूर्वविदेह, कुरु कौरव, चामर अवर चामर, शाठ और उत्तरमंत्री । मार द्वीपमें राक्षस रहते हैं । आन्य द्वीपों में मनुष्य रहते हैं ।
जम्बूद्वीप के उत्तर भागमें पहले तीन फिर तीन और फिर तीन इस प्रकार ९ कीटाद्रि हैं। इसके बाद हिमालय है । हिमालय के उत्तर में पचास योजन विस्तृत अनवतप्त नामका सरोवर है । इसके बाद गन्धमादन पर्वत है । अनवतप्त सरोवर में गंगा, सिंधु, वक्षु और सीता ये चार नदियाँ निकली । अनवतप्त के समीपमें जम्बूवृक्ष है जिससे इस द्वीपका नाम जम्बूद्वीप पड़ा ।
जम्बूद्वीप के नीचे बीस योजन परिमाण अवीचि नरक है। इसके बाद प्रतापन, तपन, महारौरव रौरव, संघात, कालसूत्र और संजीवक - ये सात नरक हैं । इस प्रकार कुल आठ नरक हैं । नरकोंमें चारों पाश्वोंमें असिपत्रवन, श्यामशबलश्वस्थान, अयः शाल्मलीवन और वैतरणी नदी ये चार उत्सद ( अधिक पीड़ाके स्थान ) हैं। जम्बूद्वीपके अधोभाग में तथा महानरकोंके धरातल में आठ शीतलनरक भी हैं। उनके नाम निम्न प्रकार हैं-अर्बुद, निरर्बुद, अटट, हहव, उत्पलपद्म और महापद्म ।
मेरु पर्वत अधोभाग में ( अर्थात् युगन्धर पर्वत के समतल में ) चन्द्रमा और सूर्य भ्रमण करते हैं । चन्द्रमण्डलका विस्तार ५० योजन है तथा सूर्यमण्डलका विस्तार ५१ योजन है । चारों द्वीपोंमें एक साथ ही
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