Book Title: Tattvarth vrutti aur Shrutsagarsuri
Author(s): 
Publisher: Z_Mahendrakumar_Jain_Nyayacharya_Smruti_Granth_012005.pdf

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Page 60
________________ २४४ : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ मांसभोजी पुरुष इस लोकमें उनका मांस भक्षण करके आनन्दित होते थे उसी प्रकार वे भी उनका रक्तपान करते और आनन्दित होकर नाचते-गाते है। इसी प्रकार अन्य नरकोंमें भी प्राणी अपने-अपने क्रमके अनुसार दुःख भोगते हैं । वैदिक परम्परा ( विष्णुपुराणके आधारसे ) भूलोकका वर्णन-इस पृथ्वीपर सात द्वीप हैं जिनके नाम ये है-जम्बू, प्लक्ष, शाल्मलि, कुपा, क्रौञ्च, शाक और पुष्कर । ये द्वीप लवण, इक्षु, सुरा, घृत, दधि, दुग्ध और जल इन सात समुद्रोंसे घिरे हुए हैं। सब द्वीपोंके मध्यमें जम्बूद्वीप है। जम्बूद्वीपके मध्यमें सुवर्णमय मेरु पर्वत है जो ८४ हजार योजन ऊँचा है । मेरुके दक्षिणमें हिमवान् , हेमकूट और निषध पर्वत हैं तथा उत्तरमें नील, श्वेत और शृंगी पर्वत हैं । मेरुके दक्षिण में भारत, किम्पुरुष और हरिवर्ष ये तीन क्षेत्र हैं तथा उत्तरमें रम्यक, हिरण्यमय और उत्तरकुरु ये तीन क्षेत्र है । मेरुके पूर्व में भद्रापूर्व क्षेत्र है तथा पश्चिममें केतुमाल क्षेत्र है । इन दोनों क्षेत्रों के बीचमें इलावृत क्षेत्र है । इलावृत क्षेत्रके पूर्व में मन्दर, दक्षिण में गन्धमादन, पश्चिममें विपुल, उत्तरमें सुपार्श्व पर्वत हैं । मेरुके पूर्वमें शीतान्त, चक्रमुञ्च, कुररी, माल्यवान् वैकङ्का आदि पर्वत हैं। दक्षिणमें त्रिकूट, शिशिर, पतङ्ग, रुचक, निषध आदि पर्वत है, पश्चिममें शिखिवास, वैदूर्य, कपिल, गन्धमादन आदि पर्वत हैं और उत्तरमें शंखकट, ऋषध, हंस, नाग आदि पर्वत है ।। मेरुके पूर्व में चैत्ररथ, दक्षिणमें गन्धमादन, पश्चिममें वैभ्राज और उत्तरमें नन्दनवन हैं। अरुणोद, महाभद्र, असितोद और मानस ये सरोवर हैं। ___मेरुके ऊपर जो ब्रह्मपुरी है उसके पासरी गंगानदी चारों दिशाओंमें बहती है । सीता नदी भद्रापूर्वक्षेत्रसे होकर पूर्व समुद्र में मिलती है । अलकनन्दा नदी भरतक्षेत्रसे होकर समुद्रमें प्रवेश करती है । चक्षुःनदी केतुमाल क्षेत्रमें बहती हुई समुद्रमें मिलती है और भद्रानदी उत्तरकुरुमें बहती हुई समुद्रमें प्रवेश करती है। इलावतक्षेत्रके पूर्वमें जठर और देवकट, दक्षिणमें गन्धमादन और कैलाश और पश्चिममें निषध और पारिपात्र और उत्तरमें त्रिशृंग और जारुधि पर्वत हैं । पर्वतों के बीच में सिद्धचारण देवोंसे सेवित खाई है और उनमें मनोहर नगर तथा वन हैं। समद्रके उत्तरमें तथा हिमालयके दक्षिणमें भारत क्षेत्र है। इसमें भरतकी सन्तति रहती है । इसका विस्तार नौ हजार योजन है। इस क्षेत्रमें महेंद्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान्, ऋक्ष, विंध्य और पारिपात्र ये सात क्षेत्र हैं। इस क्षेत्रमें इन्द्रद्वीप, कशेरुमान, ताम्रवण, गंधहस्तिमान्, नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व, वारुण और सागरसंवत ये नव द्वीप हैं । हिमवान् पर्वतसे शतद्र, चन्द्रभागा आदि नदियाँ निकली है । पारिपात्र पर्वतसे वेदमुख, स्मृतिमुख आदि नदियाँ निकली हैं। विंध्य पर्वतसे नर्मदा, सुरसा आदि नदियाँ निकली हैं । ऋषि पर्वतसे तापी, पयोष्णि, निर्विन्ध्या आदि नदियाँ निकली है। सह्य पर्वतसे गोदावरी, भीमरथी, कृष्णवेणी आदि नदियाँ निकली हैं । मलय पर्वतसे कृतमाल, ताम्रपर्णी आदि नदियाँ निकली हैं। महेन्द्र पर्वतसे त्रिसामा, आयकुल्या, आदि नदियाँ निकली है । शुक्तिमान् पर्वतसे त्रिकुल्या, कुमारी आदि नदियाँ निकली है। प्लक्षद्वीप-इस द्वीपमें शान्तिमय, शिशिर, सुखद, आनन्द, शिव, क्षेमक और ध्रुव ये सात क्षेत्र हैं । तथा गोमेंद्र, चन्द्र, नारद, दुन्दुभि, सामक, सुमन और वैभ्राज ये सात पर्वत है । अनुतप्ता, शिखी, विपाशा, त्रिदिवा, क्रम, अमृता और सुकृता ये सात नदियाँ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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